पत्रकारिता दूध फूंककर पीने की नहीं बल्कि छाछ फूंक कर पीने की चीज हो गई है. आज इस विधा से जुड़े लोगों को पत्रकारिता दिवस पर आत्म चिंतन करने की जरूरत है कि पत्रकारिता बेबाक रहेगी या सत्ता की गुलाम बन कर रह जाएगी. अगर बेबाक रही तो समाज राष्ट्र निर्माण के काम आएगी अगर सत्ता की कठपुतली बनी तो देश और समाज में विघटन पैदा करने का काम करेगी.