बलिया के 26 प्रत्याशियों पर आपराधिक मामले दर्ज

जिला निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि जनपद में मतदान प्रतिशत बहुत ही कम है जो लगभग 54% हैं. उन्होंने बताया कि इस बार 80 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों और दिव्यांग लोगों के लिए घर पर भेज कर मतदान करने की व्यवस्था थी जिनमें से 80 वर्ष से अधिक 483 लोगों ने वोट डाला. जबकि दिव्यांग लोगों में 204 लोगों ने वोट डाला. कुल 687 लोगों ने वोट डाला.

पत्रकारिता राष्ट्रभक्ति से युक्त होनी चाहिए -संघ

बलिया. पत्रकारिता राष्ट्रभक्ति से युक्त होनी चाहिए. पत्रकारिता समाज का आईना है, इसलिए एक पत्रकार को हमेशा निष्पक्ष होना चाहिए. आदि पत्रकार महर्षि नारद जी की जयंती सप्ताह के समापन के अवसर शुक्रवार को …

बलिया लाइव विशेष- कोरोना काल में बढ़ल गांव के लोगन के परेशानी

(मोहन सिंह, वरिष्ठ स्तंभकार)   कवनों विपति के समय लोगन के सामने कवना तरह के मुसीबत आवेला ओकर बहुत जीवंत वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी एगो कवित में कइले बानी,,,,. खेती न किसानी को भिखारी …

मेरा गांव इन वर्षों में कितना बदल गया! वरिष्ठ पत्रकार सुरेश प्रताप की आंखोंदेखी

ग्रामीण जीवनशैली, सोच और खेत-खलिहान में आधुनिकता दबे पांव अपना पैर पसार रही है. जब उत्पादन की प्रक्रिया बदलेगी तो उसका असर रहन-सहन पर भी पड़ेगा. हम पुरानी सोच के साथ नहीं रह सकते …

‘बलिया में क्रांति और दमन’ अपने आप में स्मृति ग्रन्थ है 1942 की क्रांति का

इस पुस्तक को पढ़ने पर यह ज्ञात हुआ कि बेल्थरारोड का बगावत कितनी ताकतवर रही, लोगों ने स्टेशन तक फूंक डाला, माल गाड़ी लूट ली, पोस्ट ऑफिस, उभांव थाने तक पर कब्जा कर लिया

अब जब इस जज्बे की तलाश होगी तो लोग दाढ़ी के सामने नत खड़े मिलेंगे – चंचल बीएचयू

बलिया से उठा, बलन्दी छू गया. ठेठ, खुद्दार, गंवई अक्स, खादी की सादगी में मुस्कुराता चेहरा, अब नहीं दिखेगा न सियासत में न ही समाज में, क्योंकि ऐसे लोग अब कैसे बनेंगे, जब उस विधा का ही लोप हो गया है, जो विधा चंद्रशेखर को गढ़ती रही

गुरु पूर्णिमा : कलम के सृजनात्मक इस्तेमाल का ककहरा

आज गुरु पूर्णिमा है और मुझे याद आ रहे हैं अपने गांव के मिडिल स्कूल के रामजी पंडित. याद आ रही उनकी छड़ी बरसाने की कला और लात- घूंसों से ठुकम्मस का वह अंदाज कि आज भी पुरवा चलती है तो पोर पोर परपराने लगता है.

खस्ताहाल सिकंदरपुर लालगंज मार्ग – तेरा वादे पर वादा होता गया…

छह माह से सिकन्दरपुर के पिलुई, गौराबगही मनियर के पास लगभग पचास मीटर लम्बी धंसी सड़क पर छोटे बड़े वाहनों के फंसने से लगातार जाम लग रहा है.

पर्यावरण को बचाने के लिए लॉकडाउन सरीखे उपाय रामबाण

वर्तमान समय में लॉकडाउन के प्रभाव से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के सभी अवयव (कारक) अपने प्राकृतिक परिवेश में स्वतंत्र रूप से विकसित होकर तथा पुष्पित एवं पल्लवित होकर पूरे निखार पर हैं.

पूर्व प्रधानमंत्री को कचोट गया था गौरी भईया का यूं अचानक चले जाना

स्वाधीनता आंदोलनकारियों के लिए उर्वरा माटी बागी बलिया के सागरपाली की धरती पर जन्म लिए थे गौरी भईया. समाजवादी संत परम्परा के मूर्धन्य विभूति पूर्व मंत्री स्वर्गीय गौरी भईया की आज पुण्यतिथि है.

शराब की खुली छूट कहीं किए कराए पर पानी न फेर दे

कोरोना वायरस की जंग में लड़ने के लिए प्रभावशाली ढंग से समय रहते हमारे प्रधानमंत्री ने प्रयास शुरू कर दिया. उनकी एक अपील पर पूरे देश की जनता ने विश्वास कर लॉकडाउन को सफल बनाया.

हक के लिए बड़ी ताकतों से टकराने में तनिक गुरेज नहीं किए शारदानंद अंचल

आज 2 मई है, शारदानंद अँचल में आस्था रखने वाले लोगों के लिये यह तारीख अति महत्वपूर्ण है. पूर्वांचल के समाजवादियों के लिए यह दिन 12 अक्टूबर से कम मायने नहीं रखता, जहां एक तरफ देश ने 12 अक्टूबर को लोहिया को खोया था वहीं 2 मई को बलिया ने अपना होनहार बेटा खोया था.

बलिया कर रहा है एक और ‘मंगल पांडेय’ का शिद्दत से इंतजार

विकास कार्य के नाम पर की गयी घोषणा हकीकत के धरातल किस रूप में आयेगी यह महत्वपूर्ण बात है. केवल घोषणाओं और योजनाओं से कहीं काम चलता है.

फितरत ‘तबीयत से मिलनसार’ हो तो तबियत आड़े नहीं आती….

लेखन-साहित्य जगत में डॉ जनार्दन राय जी जैसी शख्सियतों की शिनाख्त ही बलिया की खांटी माटी से होती है… ‘गांव क माटी’ उनकी एक कृति भी है….

रेत के किले में रहने के भी अपने खतरे होते हैं

सुनियोजित रणनीति के तहत वीपी सिंह ने प्रधानमंत्री पद के लिए देवीलाल का नाम बैठक में शुरू में ही प्रस्तावित कर दिया…. क्योंकि वीपी आश्वस्त थे कि अगर संसदीय दल को नेता चुनने की छूट दी गई तो चंद्रशेखर भारी पड़ेंगे…

धर्म का धंधा और धंधे का धर्म

पानी ही हमारे लिए तीर्थ है…… मातृस्वरूपा है…. अगर उस पानी को बचाने के लिए हम समय रहते नहीं चेते तो खामियाजा आने वाली पीढ़ियां भुगतेंगी….. हमारी पीढ़ी को इतिहास नदियों के सामूहिक संहारक के रूप में याद करेगा…..

आखिर किसने छीन ली उनकी खुशी

तटवर्ती गांवों के लोगों की आंखों के सामने उनके आशियाने ध्वस्त होते रहे, खून-पसीने से उपजायी फसलें उनकी आंखों के सामने पानी में डूबती रहीं.

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गांव मर रहे हैं…और मारे जा रहे हैं

दो बेटियां थी बिना जांचे-परखे जैसे-तैसे बियाह कर दिए…अब उ बेचारिन के का गलती जो ससुराल में नौकरानी बन के जी रही है, दो बेटों में एक कमाने सूरत भाग गया.

रामव्यास बाबा – तिकवत का बाड़…… आगे बढ़ मरदे….. बाबा एगो हइए हवन

कद काठी से हल्के फुल्के थे ही, मगर उनकी यह हरकत प्रेमचंद की ‘बूढ़ी काकी’ की याद दिला रही थी कि ‘बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरामन होता है.’

नदियां बदला ले ही लेंगी….

अब हमारी सुरक्षा की जिम्मेवारी केवल फोर्स पर है…. फोर्स ही हमें हर आपदा से बचा रही है… सीमा से लेकर गांव तक…. क्योंकि हमारी बाकी प्रतिरोधक मशीनरी… गवर्नेंस कुंद पड़ गई है…

पानी अब उतरने लगा है ….

दियारे पर दो-तीन दशक पहले घनी आबादी वाले गांव थे, जिनमें पचासों हजार की आबादी बसी हुई थी.अचानक गंगा ने अपना रास्ता बदला और ये गांव उसमें समाते चले गए.

गांगा जी बिलववले बाड़ी, उहे फेरू बसाइहें…

मुख्यमंत्री का आदेश था कि कोई भी बाढ़ पीड़ित खुले आसमान के नीचे नहीं रहे… मगर तादाद इतनी ज्यादा है कि सभी को छत की ओट नसीब नहीं हुई….

जिस तरह चाहो बजाओ यार, हम आदमी नहीं, झुनझुने हैं!

दुबेछपरा रिंग बांध को बनाने में जितनी लागत आई थी, उससे डेढ़ या पौने दोगुना उसे बचाने की कवायद में जाया हो चुका है. खुद बैरिया विधायक सुरेंद्र नाथ सिंह का दावा है 29-30 करोड़ रुपये उनकी सरकार ने बांध को बचाने पर खर्च किया, मगर लोगों को प्राकृतिक आपदा से बचाने में विफल रहे. ऐसे में कई सवाल किसी भी संवेदनशील आदमी के दिमाग में कौंध सकते हैं.

हिन्दी में हस्ताक्षर नहीं तो पुरस्कार वापस

सम्मानित होने के लिए लोग समारोह स्थल पर पहुंचे. अंग्रेजी में हस्ताक्षर देख आयोजक ने कहा कि हिन्दी में हस्ताक्षर न करने पर पुरस्कार वापस ले लिये जायेंगे.

अपराध इतिहास-भूगोल ही नहीं, बलिया के अर्थशास्त्र को भी डावांडोल कर रहा

दीप तले अंधेरे की कहावत चरितार्थ करता है इनका अपना घर, अपना इलाका. क्या वजह है कि यहां की प्रतिभाएं अन्यत्र रंग दिखाती हैं, जबकि यहां लाचार दिखती हैं? ये सवाल अब भी अनुत्तरित है.