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व्रत करने वाले जल में खड़े होकर डालों को उठाकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं, सूर्यास्त के पश्चात व्रती पूरी रात साधना करते हैं , कुछ घर भी वापस आ जाते हैं ,रात्रि जागरण होता है , सप्तमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में पुन: बाँस के डालों में पकवान, नारियल, केला, मिठाई लेकर नदी तट पर व्रती सपरिवार जाते हैं , जहाँ उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं.
छठ महापर्व की शुरुआत नहाय-खाय से शुरू हुई. इसदिन व्रती कद्दू-भात का प्रसाद बनाकर ग्रहण करते हैं. इसको लेकर कद्दू खरीदना अनिवार्य रहता है. इसलिए कद्दू के दाम में उछाल रहा. भारी मांग की वजह से 50 रुपये से लेकर सौ रुपये तक कद्दू बाजार में बिके। गली-मुहल्लों, चौक-चौराहों और थोक के साथ खुदरा मंडियों में अलग-अलग रेट देखने को मिला. बाजार में कद्दू 50 से 60 रुपए किलो मिल रहा था.