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तो, विफलताओं पर तुष्ट हूं अपनी/ और यह विफल जीवन/ शत–शत धन्य होगा/ यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का/ कण्टकाकीर्ण मार्ग/ यह कुछ सुगम बन जावे ! यह पंक्तियां विफलता – शोध की मंजिलें शीर्षक कविता से उद्धृत हैं. उक्त कविता की रचना 9 अगस्त 1975 को चण्डीगढ़-कारावास में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने की थी. इसमें कोई संशय नहीं कि इस युग पुरुष ने शोध और प्रयोग में ही अपना जीवन गुजार दिया. आज उनकी जयंती है. आइए जानते हैं उन्हीं के शब्दों में उनके गांव के तरुणों का कण्टकाकीर्ण मार्ग किस हद तक सुगम हुआ है. प्रस्तुत है जेपी के गांव से लवकुश सिंह की स्पेशल रिपोर्ट
नौवीं पुण्यतिथि पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के गृहनगर से उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान देने की पुरजोर मांग उठी. जस्टिस फॉर आल के तहसील मैदान स्थित कार्यालय पर चंद्रशेखर के पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया. इस मौके पर उन्हें भारतरत्न दिलाने के लिए हस्ताक्षर अभियान प्रारंभ किया गया.
वीर लोरिक स्टेडियम में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की चित्र को बनाने के लिए ड्राइंग प्रतियोगिता आयोजित की गई. इसमें जिला मुख्यालय समीर ग्रामीण क्षेत्रों के कक्षा 4 से कक्षा 8 तक के छात्र-छात्राओं ने उत्साह पूर्वक भाग लिया. मूल्यांकन के बाद शाम को परिणामों की घोषणा की गई. मुख्य अतिथि विधान परिषद सदस्य रवि शंकर सिंह ने प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय स्थान पाने वाले छात्र छात्राओं को पुरस्कार के रूप में साइकिल स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए उन्हें बधाई दी.