खेती और बेटी को बढ़ावा देने की जरूरत – प्रो. योगेंद्र सिंह

जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के कुलपति योगेन्द्र सिंह ने कहा कि विश्व के 18 देशों में भोजपुरी भाषा बोली जाती है. 25 करोड़ की आबादी भोजपुरी को अपनी मातृभाषा मानती है. बावजूद भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में आज तक शामिल नहीं किया गया, जो सोचनीय प्रश्न है.

साहित्य के पुरोधा के गांव को तारणहार का इंतजार

लोक साहित्य व संस्कृति के पुरोधा, भोजपुरी के शेक्सपियर का गांव कुतुबपुर काश. स्थानीय सांसद व केन्द्रीय राज्य मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी के सांसद ग्राम योजना के तहत गोद में होता तो शायद पुरोधा के गांव को तारणहार की प्रतीक्षा नहीं होती. गंगा नदी नाव से उस पर छपरा से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित कुतुबपुर गांव आज भी अंधेरे में है. कार्यक्रमों की रोशनी व राजनेताओं का आश्वासन भी उस गांव को रोशन नहीं कर सका.

चीथड़ों में गुजर बसर कर रहे हैं  भिखारी ठाकुर के परिजन

रविवार को लोक संस्कृति के वाहक कवि व भोजपुरी के शेक्सपियर माने जाने जाने वाले भिखारी ठाकुर का जयंती मनाई गई, लेकिन क्या कोई यकीन कर सकता है कि भक्तिकालीन कवियों व रीति कालीन कवियों के संधि स्थल पर कैथी लिपि में कलम चलाकर फिर रामलीला, कृष्णलीला, विदेशिया, बेटी-बेचवा, गबरघिचोरहा, गीति नाट्य को अभिनीत करने वाले लोक कवि भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का परिवार चीथड़ों में जी रहा हो.

भोजपुरी लोकधुन लहरों के राजहंस भिखारी ठाकुर

असीमीत जमीनी जानकारी, सपाट शैली व अलौकिक इल्म ने तब के ‘लोकगायक’ भिखारी ठाकुर को अंतर्राष्ट्रीय उंचाई दी. अति सामान्य इस व्यक्ति की लोक समझ, शोध प्रबंधों का साधन बन गई. भोजपुरी के प्रतीक भिखारी ठाकुर अपनी प्रासंगिक रचनाधर्मिता के कारण भारतीय लोक साहित्य में ही नहीं, सात समुंदर पार मारीशस, फीजी, सूरीनाम जैसे देशों में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं.

13 अगस्त 1942, महिलाओं ने संभाला था मोर्चा

जब ब्रिटिश हुकूमत ने बलिया में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ रहे लोगों पर कहर ढाना शुरू किया तो 13 अगस्त 1942 को महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. महिलाएं बलिया चौक में एकत्रित हुईं और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.

12 अगस्त 1942, जब छात्रों ने किया क्रांति का शंखनाद

1942 का आंदोलन बलिया में उग्र होता जा रहा था. अंग्रेजों का जुल्म भी बढ़ता जा रहा था. आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने जिला अधिकारी एवं पुलिस कप्तान को व्यापक अधिकार दे रखे थे.

अब भी बलिया के युवकों में बयालीस का खून उबलता है

महात्मा गांधी के अंग्रेजों भारत छोड़ो नारे का प्रभाव बलिया में बढ़ता जा रहा था, न केवल स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, बल्कि विद्यार्थी एवं महिलाएं भी इस आंदोलन में कूद पड़ी थी.

रसड़ा के सेंट जेवियर्स का छात्र लापता, अब तक कोई सुराग नहीं

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चाय लेंगे या पानी?

आजकल सरकार की ओर से ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ‘, ‘पानी बचाओ-धरती बचाओ‘ आदि मुहिम चलायी जा रही हैं। चलिये,इस कदम से किसी मुहिम को तो बल मिलेगा। अगर अधिसूचना जारी कर दी जाये कि “ अतिथि,पानी साथ लाओगे“ तो आश्चर्य नहीं।

श्रीकृष्ण रास लीला

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