एक तरफ डबल इंजन की सरकार ने सबसे अच्छा कार्य करने का दावा कर रही है. सारी समस्या समाप्त होगी. देश व प्रदेश आगे बढ़ेगा और आगे बढ़ रहा है, के बीच लोक शिक्षा प्रेरक, वर्षों से प्राथमिक विद्यालय का ताला खोलने वाले शिक्षा मित्र अपने को ठगा महसूस कर रहे है. सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू करते समय लोक शिक्षा प्रेरको को सब्जबाग दिया था कि प्रेरक नई उर्जा के साथ कार्य करेगें. लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
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सरकार ने प्रेरकों के साथ घोर अन्याय किया है. अपनी मांगों के संबंध में प्रेरकों का प्रतिनिधिमंडल बार-बार सरकार के मंत्रियों से मिलकर अपनी जायज मांगे रखता रहा है लेकिन किसी मंत्री ने प्रेरकों की बात सरकार तक नहीं पहुंचाई. सरकार प्रेरकों का बकाया मानदेय एवं सेवा बहाली नहीं करती है तो प्रेरक विधानसभा के सामने आंदोलन करने को विवश है.
साक्षर भारत योजना के तहत कार्यरत शिक्षा प्रेरकों ने अपने दो वर्ष के बकाया मानदेय को लेकर संघर्ष की रणनीति तैयार की है. सोमवार को हुई बैठक में सरकारी विभागों चेतावनी दी गई है कि यदि साक्षरता पर विकास परीक्षा से पहले उनके समस्त मानदेय का भुगतान नहीं कर दिया जाता है तो वह 21 अगस्त को होने वाली साक्षरता परीक्षा एवं मूल्यांकन का बहिष्कार कर सकते हैं.
देश की साक्षरता दर में वृद्धि के उद्देश्य से साक्षर भारत योजना का शुभारंभ 8 सितंबर 2009 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था. योजना देश के सभी प्रांतों में लागू की गई योजना का अच्छा परिणाम भी देखने को भी मिला और देश की साक्षरता दर में अप्रत्याशित वृद्धि हुई. महिलाओं की साक्षरता दर में काफी सुधार हुआ.
अपने दो वर्ष के बकाया मानदेय भुगतान को लेकर लोक शिक्षा केंद्रों पर कार्यरत प्रेरक परेशान हैं. जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश मुख्यालय तक धरना प्रदर्शन के बावजूद समाजवादी सरकार ने इनकी एक नहीं सुनी. चालू वित्तीय वर्ष में प्रेरकों के मानदेय का भुगतान बिल्कुल नहीं हुआ है. साथ ही ब्लॉक समन्वयकों का मानदेय प्रेरकों से भी दुगुने माह का बकाया है.