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तो, विफलताओं पर तुष्ट हूं अपनी/ और यह विफल जीवन/ शत–शत धन्य होगा/ यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का/ कण्टकाकीर्ण मार्ग/ यह कुछ सुगम बन जावे ! यह पंक्तियां विफलता – शोध की मंजिलें शीर्षक कविता से उद्धृत हैं. उक्त कविता की रचना 9 अगस्त 1975 को चण्डीगढ़-कारावास में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने की थी. इसमें कोई संशय नहीं कि इस युग पुरुष ने शोध और प्रयोग में ही अपना जीवन गुजार दिया. आज उनकी जयंती है. आइए जानते हैं उन्हीं के शब्दों में उनके गांव के तरुणों का कण्टकाकीर्ण मार्ग किस हद तक सुगम हुआ है. प्रस्तुत है जेपी के गांव से लवकुश सिंह की स्पेशल रिपोर्ट