अदनान की यह कविता माँ की दिनचर्या के आत्मीय, सहज चित्र के जरिेए “माँ और उसके जैसी तमाम औरतों” के जीवन-वास्तव को रेखांकित करती है. अपने रोजमर्रा के वास्तविक जीवन अनुभव के आधार पर गढ़े गये इस शब्द-चित्र में अदनान आस्था और उसके तंत्र यानि संगठित धर्म के बीच के संबंध की विडंबना को रेखांकित करते हैं.