महंत आशीष गिरी के आत्महत्या के कुछ मायने होंगे, खुलासा तो होना चाहिए

  • निरंजनी अखाड़े के संत रहे आशीष गिरी ने प्रयागराज स्थित अपने कमरे में 17 नवंबर को खुदकुशी कर ली थी
  • प्रयागराज से आलोक श्रीवास्तव

    कहा जाता है – जर ( धन ), जोरू ( महिला ) और जमीन फसाद की जड़ होते हैं. इसमें या तो तनाव में आकर आदमी आत्महत्या कर लेता है या उसकी हत्या कर दी जाती है. प्रयागराज में निरंजनी अखाड़े के सचिव रहे महंत आशीष गिरी ने 17 नवंबर 2019 को सुबह के करीब 9 बजे अपने लाइसेंसी पिस्टल से खुद को गोली मारकर जान दे दी. जान दी या जान ले ली गई, यह तो पुलिस के जांच का विषय है. लेकिन जो खबर निकलकर आ रही है उसके मुताबिक मौत के पीछे न जर है और न ही जोरू, मामला जमीन का निकलकर सामने आ रहा है.

    करोड़ों की जमीन के कर्ताधर्ता थे

    महंत आशीष गिरी वाराणसी, मिर्जापुर और प्रयागराज के मांडा और कोरांव स्थित निरंजनी अखाड़े की सैकड़ों एकड़ जमीन की देखरेख करते थे. जो चर्चाएं हैं, वह किसी भी जमीन को बेचने के पक्षधर नहीं थे. उनका कहना था कि यदि जमीनें बिक जाएंगी तो अखाड़े के संत भोजन कहां से करेंगे. लेकिन उन पर जमीन बेचने का बहुत दबाव था. पिछले साल मांडा में 15-16 एकड़ जमीन बेचने की बात सामने आई है. सौदा कई करोड़ में हुआ. जमीन का एक हिस्सा एक बिल्डर के नाम बिका, दूसरा हिस्सा एक राजनीतिक परिवार के नाम बिका. करोड़ों की रकम कहां गई, संतों को मालूम नहीं है. दबी जुबान से कुछ संत कह रहे हैं कि दबाव देकर आशीष गिरी से जमीन बिक़वाई गई थी. कोरांव की भी जमीन बेचने का दबाव था, लेकिन यह अब तक नहीं हो सका है. चर्चा है कि कुछ संत दबाव डालकर जमीन बिचवाकर धन कमाना चाहते थे, जो आशीष गिरी नहीं चाहते थे.

    सचिव के पद से हटाना चाहते थे कुछ संत ?

    चर्चा यह भी है कि सचिव होने के नाते उन्हीं के दस्तखत से जमीन की खरीद-बिक्री हो सकती थी. अपने मकसद में कामयाब न हो पाने के कारण उन्हें सचिव पद से हटाने की गुपचुप तरीके से तैयारी चल रही थी. अखाड़े की राजनीति में वह अपने आप को कमजोर पा रहे थे. इससे निराश होकर उन्होंने हरिद्वार में अपने गुरु को फोन किया था और अपनी परेशानी बताई थी. यह भी कहा था कि वह जान दे देंगे. अखाड़े से संबंधित जांच के लिए संतों की एक टीम 14 नवम्बर को हरिद्वार से इलाहाबाद आई थी. उन्हें जंक्शन स्टेशन पर रिसीव करने खुद आशीष गिरी गए थे. इन्हीं संतों से नाश्ते के टेबल पर बाघम्बरी मठ में उनकी बात होनी थी. इसी बाबत नरेंद्र गिरी ने उन्हें सुबह फोन किया था. उन्होंने स्नान करके आने की बात कही थी लेकिन उसके बाद गोली लगने से उनकी मौत हो गई. चर्चा है कि जमीन संबंधी मामले पर ही बात होनी थी, शायद इसी को लेकर वह दबाव में आ गए होंगे. कहा जाता है कि जब से वह संत बने कभी घर नहीं गए, उनका घर उत्तराखंड में था. इसलिए परिवार के लोगों का न आना समझ में आता है लेकिन बगैर प्राथमिकी लिखे उनको जलसमाधि देना समझ से परे है.

      क्या पुलिस भी दबाव में है ?

      वैसे तो पुलिस जांच-पड़ताल के लिए स्वतंत्र होती है. वह किसी भी मामले की जांच जरूरी समझने पर कर सकती है. लेकिन कोई माने या न माने व्यवहारिक रूप से कहीं न कहीं से कुछ न कुछ दबाव होता है. सुसाइड नोट मिलने पर पुलिस पड़ताल करती है लेकिन जहां सुसाइड नोट नहीं मिलता उस मामले में इस बात की जांच की जाती है कि किसी मामले में कहीं से कोई दबाव तो नहीं था। पर पुलिस यहां पर मौन है। उनके पास दो मोबाइल थे। सम्भवतः पुलिस कॉल डिटेल निकालने की तैयारी कर रही है , इससे पता लग सकेगा कि उन्होंने किन-किन लोगों से बात की। इसके बाद सम्भवतः कुछ खुलासा हो सके। यदि सभी संभावित कोण पर जांच की जाए तो हकीकत सामने आ सकती है। पहले कहा जा रहा था कि वह बीमारी से परेशान थे। उनका लीवर और किडनी खराब हो चुका था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद यह स्पष्ट हो चुका है कि ऐसा कुछ भी नहीं था । इसलिए बीमारी वाला मुद्दा तो कमजोर पड़ रहा है। जाहिर है इसके अलावा कोई बात होगी। कोई यूं ही आत्महत्या नहीं करता।

      क्या कहता है मनोविज्ञान

      माना जाता है कि संत माया और मोह से दूर होता है। वह हर वक्त सत्य बोलता है। दबाव से दूर रहता है। भागवत भजन में व्यस्त रहता है। वह मानसिक रूप से आम आदमी से ज्यादा ताकतवर होता है। इन सब गुणों को देखते हुए उन्हें तो दबाव में आना ही नहीं चाहिए था। यदि दबाव में थे तो खुलकर सत्य वचन बोलने चाहिए थे , क्योंकि संत होने के कारण उन्हें जर , जोरू , जमीन से कोई मतलब नहीं था। संत होने के बाद भी मौन रहना , दबाव में आना और उसकी परिणीति आत्महत्या के रूप में होना , इसका कुछ अर्थ है। पुलिस को इसका मतलब खोजना चाहिए। यह पुलिस के लिए भी जरूरी है , इससे उनके अनुभव में ही वृद्धि होगी , जो भविष्य के किसी मामले में काम आ सकती है। मैं तो चाहता हूं कि भविष्य में ऐसी कोई भी घटना न हो लेकिन ऐसा नामुमकिन है। महंत अब इस दुनिया में नहीं हैं , अब किसी सीख व उपदेश का कोई मतलब नहीं है , उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। लेकिन मौत के कारणों का खुलासा हर हाल में होना चाहिए।

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