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हमें एक ही रास्ता दिखाई देता है कि यदि हम सनातन संस्कृति एवं भारतीय परम्परागत ज्ञान परम्परा में निहित अवधारणाओं के अनुसार प्रकृति के अनुसार व्यवहार करें, उसके अनुसार अपनी जीवन शैली एवं जीवन चर्या को अपनाएं तो निश्चित ही हम प्रकृति को भी बचा सकते हैं, प्रदूषण को भी भगा सकते हैं एवं पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी संतुलन भी बनाए रख सकते हैं















