यह तिस्ता है. तिस्ता सिंह. छपरा की रहनेवाली. कम उम्र में ही सधी हुई कलाकार. अपने बड़े भाई तुल्य, बिहार के चर्चित कलाकार उदय नारायण सिंह की बिटिया. पटना एम्स में भर्ती है. बीमारी यह थी कि इसका बुखार जा नहीं रहा था.
अक्सर भोजपुरी सिनेमा को एक अलग नज़रिये से देखा जाता है, मगर पिछले दिनों जब से इस इंडस्ट्री में भी साफ सुथरी फिल्मों का चलन बढ़ा है, उसके बाद एक से एक फिल्में आ रही है, जिसे दर्शक तो पसंद कर ही रहे हैं. फ़िल्म क्रिटिक भी सरप्राइज्ड हैं.
कहते हैं औरत को कभी अबला नहीं समझना चाहिए. क्योंकि जब उनकी अंदर की शक्ति जगती है, तो वो संहार तक करने की क्षमता रखती हैं. ऐसा ही कुछ हुआ एक अबला के नारी के साथ, जिसने तलवार उठाई कर जंग का ऐलान कर दिया.
अदनान की यह कविता माँ की दिनचर्या के आत्मीय, सहज चित्र के जरिेए “माँ और उसके जैसी तमाम औरतों” के जीवन-वास्तव को रेखांकित करती है. अपने रोजमर्रा के वास्तविक जीवन अनुभव के आधार पर गढ़े गये इस शब्द-चित्र में अदनान आस्था और उसके तंत्र यानि संगठित धर्म के बीच के संबंध की विडंबना को रेखांकित करते हैं.
अमरकांत अत्यंत आत्मीय कथाकार, उपन्यासकार थे. उतने ही सहज और पारदर्शी. उनकी रचनाएं दिल को छू कर देर तक दिमाग पर छाई रहती हैं. अमरकांत की अनुपस्थिति से रिक्तता का बोध होना स्वाभाविक है. वे प्रेमचंद की परंपरा के कथाकार थे. उन्होंने उस समय अपनी पहचान बनाई जब नई कहानी आंदोलन जोर पकड़ चुका था.