बलिया के गौरवशाली इतिहास की झांकी है महावीरी झण्डा जुलूस

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बलिया का वो पहला महावीरी झण्डा जुलूस जिसमें हमारे पूर्वज जगन्नाथ सिंह जूते के नोक पर जार्ज पंचम का तगमा जूते के फीते में बांध कर निकले थे

               

शिवकुमार सिंह कौशिकेय

बलिया। 118 साल का हुआ बलिया में महाबीरी झण्डा उत्सव की परम्परा. 1910 ई में जार्ज पंचम की ताजपोशी के विरोध में जिले के क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ठाकुर जगन्नाथ सिंह के नेतृत्व में गठित विद्यार्थी परिषद ने निकाला था पहला महाबीरी झण्डा जुलूस. श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन के दिन बलिया नगर में निकलने वाले ऐतिहासिक महाबीरी झण्डा जुलूस के इतिहास को रेखांकित करते हुए साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के बाद 1887 ई तीस वर्षों तक आजादी की आग ठंडी पड़ी थी. किन्तु देश धीरे-धीरे जाग रहा था. बंगाल में महर्षि अरविंद घोष और उनके छोटे भाई वारीन्द्र घोष, बिहार के मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र का उत्सर्ग युवाओं को उद्वेलित कर रहा था.

ऐसे ही विप्लवी मानसिकता के गवर्नमेंट स्कूल में पढ़ने वाले युवा ठाकुर जगन्नाथ सिंह को बम्बई से निकलने वाले साप्ताहिक अखबार जमशेद के माध्यम से पता चला कि जार्ज पंचम की दिल्ली में होने वाली ताजपोशी की खुशी में लोकमान्य तिलक जी मांडले जेल से छोड़ दिये जायेंगे. गवर्नमेंट स्कूल में सभी विद्यार्थियों को बताया गया कि सभी लोग आठ-आठ आना पैसा जमा कर देंगे. जिसके एवज में उन्हें जार्ज पंचम की ताजपोशी का तगमा दिया जायेगा, और मिठाई खाने को मिलेगी. ठाकुर साहब ने अठन्नी तो जमा कर दिया. किन्तु उनके दिलों दिमाग में विद्रोह की आग जल रही थी.
शहर के आदित्य राम मंदिर में विद्यार्थी परिषद की बैठक हुई. जिसमें पं. हृदय नारायण तिवारी, मुनीश्वर मिश्र, केदारनाथ उपाध्याय, शिवदत्त तिवारी, नंदकिशोर चौबे और पं. परशुराम चतुर्वेदी (जो बाद में ख्यातलब्ध साहित्यकार हुए) सहित कुल 35 छात्र शामिल हुए. यही जार्ज पंचम की ताजपोशी का विरोध करने और महाबीरी झण्डा जुलूस निकालने की योजना बनाई गई.
कौशिकेय ने बताये कि अगले दिन सभी स्कूलों के छात्र सीने पर जार्ज पंचम की तस्वीर लगे तगमे को लगाकर पहुँचे. लेकिन ठाकुर जगन्नाथ सिंह उस तगमे को अपने जूते के फीते में बाँध कर स्कूल पहुँचे थे. गवर्नमेंट स्कूल में हड़कम्प मच गया.
कौशिकेय ने कहा कि उस दिन बलिया नगर में अजीब नजारा देखने को मिल रहा था. अगस्त का ही महिना था, एक ओर जार्ज पंचम की ताजपोशी की खुशी में सरकारी स्कूलों के बच्चे छोटी- छोटी झण्डियां लेकर सड़क पर निकले. इस जुलूस में जार्ज पंचम के जयकारे लग रहे थे. दूसरी ओर एक लम्बे बाँस में लाल रंग के कपड़े पर बड़े- बड़े अक्षरों में वंदे मातरम और तिलक महाराज की जय लिखे झण्डे के साथ वंदेमातरम, भारत माता की जय और तिलक महाराज की जय के नारे लगाते हुए आजादी के दीवानों का जुलुस शहर में घूम रहा था. आदित्य राम मंदिर से निकला यह जुलुस चौक लोहापट्टी, गुदरीबाजार, बालेश्वरघाट गंगा पूजन कर बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर, भृग जी मंदिर से होकर जब यह जुलुस जापलिनगंज पुलिस चौकी के पास पहुँचा तो एक सिपाही ने जुलुस को रोकने का प्रयास किया. किन्तु ठाकुर साहब ने जब उसे बलिया की भाषा में समझा दिया. तो वह चुपचाप चला गया. यही बलिया जिले के सिकन्दरपुर, रसड़ा, सुखपुरा, गड़वार, बिल्थरारोड, रेवती आदि कस्बों गाँवों में निकलने वाले महाबीरी झण्डा जुलूस का पहला महाबीरी झण्डा जुलूस था. जिसकी परम्परा आज भी कायम है.
कौशिकेय बताते हैं कि महाबीरी झण्डा जुलूस में झांकियों की परम्परा 1927 ई0 में शुरु हुई थी. पहली बार मिट्टी की बनी महाबीर जी की मूर्ति को बाँस की बनी पालकी पर निकाला गया था. जिसे आठ लोग कंधे पर लेकर चल रहे थे. समय के साथ जुलुस में अनेकों झांकियों को शामिल किया जाने लगा.
बताया कि सन् 1930ई. में ब्रिटिश सरकार ने जंग ए आजादी की कोख से निकले इस जुलुस को बंद कराने की साजिश रची. तत्कालीन एसपी मि हिक ने तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर मु निजामुद्दीन के माध्यम से हिन्दू- मुसलमान को लड़ाई करने के लिये उकसाने का षडयंत्र किया. किन्तु देशभक्त डिप्टी कलेक्टर मु निजामुद्दीन ने ठाकुर जगन्नाथ सिंह को बलिया से बाहर भेज दिया. किन्तु समुदाय विशेष के कुछ लोगों ने ब्रितानी मूल के मि हिक की साजिश में महाबीरी झण्डा जुलूस के मार्ग को लेकर अदालत में मुकदमा कर दिया. जिसे बलिया के ख्यातिनाम अधिवक्ता बाबू मुरली मनोहर ने निःशुल्क लड़कर जीत दिला दिया था.
कौशिकेय बताते हैं कि सन् 1968 ई में षडयंत्र के तहत कुछ अराजक तत्वों ने विष्णुपुर चौराहे पर पथराव शुरु कर दिया. जुलूस में शामिल भीड़ के जबाबी पथराव के बाद पुलिस ने फायरिंग की जिसमें सिनेमा रोड निवासी केदार नोनिया मारे गए और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे. सन 1990 ई0 में तब एक अवरोध पैदा हो गया था. जब तत्कालीन एसडीएम राजीव कपूर ने जगदीशपुर अखाड़े का जुलुस रोक दिया था. तब सात दिनों तक यह जुलुस सड़कों पर ही खड़ा रहा, वही पूजा चलती रही. सन् 2005 ई में फिर एक बार अराजक तत्वों ने चमनसिंह बाग चौराहे पर टाऊन हॉल अखाड़े के जुलूस पर हमला करके अवरोध उत्पन्न किया था. जिसके कारण तीन दिनों तक यह जुलुस सड़कों पर ही रुका रहा.

सम्प्रति जनपद में परम्परा के अनुरूप ही महाबीरी झंडा जुलूस अनवरत हर साल शान्ति पूर्ण ढंग से निकलता है. जिसकी मूल आत्मा क्रांति, विद्रोह व बगावत की ही है.