पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) और बिहार के ज्यादातर इलाकों में जिउतिया (जितिया) मनाया जाता है. “जितिया पावैन” एक अपभ्रंश है. इसका सही नाम होता है जीविकपुत्रिका व्रत (जीवित्पुत्रिका व्रत). इस पर्व में महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. आश्विन कृष्ण अष्टमी के प्रदोषकाल में पुत्रवती महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं.
कैलाश पर्वत पर भगवान शंकर माता पार्वती को कथा सुनाते हुए कहते हैं कि आश्विन कृष्ण अष्टमी के दिन उपवास रखकर जो स्त्री सायं प्रदोषकाल में जीमूतवाहन या जीऊतवाहन की पूजा करती हैं तथा कथा सुनने के बाद आचार्य को दक्षिणा देती है, वह पुत्र-पौत्रों का पूर्ण सुख प्राप्त करती है. व्रत का पारण दूसरे दिन अष्टमी तिथि की समाप्ति के पश्चात किया जाता है. यह व्रत अपने नाम के अनुरूप फल देने वाला है. जितिया व्रत के बारे में आस्था है कि इसे करने से भगवान जीऊतवाहन, पुत्र पर आने वाली सभी समस्याओं से उसकी रक्षा करतें हैं. इस व्रत को विवाहित महिलाएं करती हैं. मान्यता है कि इसे करने से पुत्र प्राप्ति भी होती है.
जीवित्पुत्रिका या जितिया पर्व बड़ी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाए जाने वाले पर्वों में से एक है. जिसे अपनी संतान की मंगलकामना के लिए मनाया जाता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी से नवमी तिथि तक मनाया जाता है. छठ की भांति यह व्रत भी तीन दिनों तक चलता है, जिसमे पहले दिन नहाय खाय, दुसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन व्रत का पारण होता है.
जितिया पर्व 2018 (जीवित्पुत्रिका व्रत) Jutiya 2018 : Jivitputrika Vrat 2018
वर्ष 2018 में जीवित्पुत्रिका व्रत 2 अक्टूबर 2018, मंगलवार के दिन मनाया जाएगा.
इस पर्व का मुख्य दिन अष्टमी का दिन होता है. जिस दिन निर्जला व्रत रखा जाता है. इससे एक दिन पहले यानी सप्तमी तिथि को नहाय खाय होता है. जबकि अष्टमी के अगले दिन नवमी तिथि को जितिया व्रत का पारण किया जाता है.
व्रत का पहला दिन
जितिया व्रत के पहले दिन को नहाई खाई कहा जाता है, इस दिन महिलाएं प्रातःकाल जल्दी जागकर पूजा पाठ करती है और एक बार भोजन करती है. उसके बाद महिलाएं दिन भर कुछ भी नहीं खातीं.
जितिया व्रत का दूसरा दिन
व्रत के दूसरे दिन को खुर जितिया कहा जाता है. यह जितिया व्रत का मुख्य दिन होता है. इस पुरे दिन महिलाएं जल ग्रहण नहीं करती और निर्जला उपवास रखती है.
व्रत का तीसरा दिन
यह व्रत का आखिरी दिन होता है. इस दिन व्रत का पारण किया जाता है. वैसे तो इस दिन सभी सामान्या खाना खा सकते है, लेकिन मुख्य रूप से झोर भात, नोनी का साग, मड़ुआ की रोटी और मरुवा का रोटी सबसे पहले भोजन के रूप में ली जाती है.
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जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व और पूजा विधि
आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. माना जाता है जो महिलाएं जीमूतवाहन की पुरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करती है उनके पुत्र को लंबी आयु व् सभी सुखो की प्राप्ति होती है. पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है और फिर पूजा करती है. इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील व सियारिन की प्रतिमा बनाई जाती है. जिसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है. पूजन समाप्त होने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है. पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती है. कहते है जो महिलाएं पुरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख व उनकी समृद्धि प्राप्त होती है.
जितिया पर्व की कथा
इस पर्व से एक विशेष कथा जुडी हुई है जिसके मुताबिक एक बार एक जंगले में चील और लोमड़ी घूम रहे थे. वहीं कुछ लोग इस व्रत और कथा के बारे में बातें कर रहे थे. चील ने सभी की बातों को बहुत ध्यान से सुना, जबकि लोमड़ी चुपचाप वहां से चली गई. जिसके फलस्वरूप चील की संतानें सही सलामत रहीं, जबकि लोमड़ी की एक भी संतान जीवित नहीं बची.
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जीवित्पुत्रिका-व्रत के साथ जीमूतवाहन की कथा भी जुड़ी है.
गन्धर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था. वे बड़े उदार और परोपकारी थे. जीमूतवाहन के पिता ने वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाते समय उन्हें राजसिंहासन पर बैठाया, किन्तु इनका मन राज-पाट में नहीं लगता था. वे राज्य का भार अपने भाइयों पर छोडकर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले गए. वहीं पर उनका मलयवती नामक राजकन्या से विवाह हो गया. एक दिन जब वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन काफी आगे चले गए, तब उन्हें एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखी. इनके पूछने पर वृद्धा ने रोते हुए बताया – मैं नागवंश की स्त्री हूं और मुझे एक ही पुत्र है. पक्षीराज गरुड के समक्ष नागों ने उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा की हुई है. आज मेरे पुत्र शंखचूड की बलि का दिन है. जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त करते हुए कहा – डरो मत. मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा. आज उसके बजाय मैं स्वयं अपने आपको उसके लाल कपडे में ढंककर वध्य-शिला पर लेटूंगा. इतना कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड के हाथ से लाल कपडा ले लिया और वे उसे लपेटकर गरुड़ को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट गए. नियत समय पर गरुड बड़े वेग से आए और वे लाल कपडे में ढंके जीमूतवाहन को पंजे में दबोचकर पहाड के शिखर पर जाकर बैठ गए. अपने चंगुल में गिरफ्तार प्राणी की आंख में आंसू और मुंह से आह निकलता न देखकर गरुडजी बड़े आश्चर्य में पड़ गए. उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा. जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया. गरुड जी उनकी बहादुरी और दूसरे की प्राण-रक्षा करने में स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत से बहुत प्रभावित हुए. प्रसन्न होकर गरुड जी ने उनको जीवन-दान दे दिया तथा नागों की बलि न लेने का वरदान भी दे दिया. इस प्रकार जीमूतवाहन के अदम्य साहस से नाग-जाति की रक्षा हुई और तबसे पुत्र की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा की प्रथा शुरू हो गई.
जितिया व्रत नियम
इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया पिया जाता है. सूर्योदय के बाद आपको कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है. इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता.