केदारनाथ सिंह नहीं रहे, घड़ी भर को मानो हिंदी ने साँस रोक ली

दिल्ली। हिंदी कविता में नए बिंबों के प्रयोग के लिए जाने जाने वाले वरिष्ठ शब्द शिल्पी केदरानाथ सिंह का सोमवार को दिल्ली में निधन हो गया. वह पिछले कुछ समय से अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एम्स) में भर्ती थे. वहां उन्होंने आज रात पौने नौ बजे अंतिम सांस ली. वह 8 साल के थे. उनका मंगलवार को दिल्ली के लोधी रोड स्थित श्मशान घाट में अंतिम संस्कार किया जाएगा. केदारनाथ सिंह का जन्म 1934 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव में हुआ था.

‘आप उनके आठों कविता संग्रहों को पढ़ जाइए, हर दूसरी कविता में उनका गांव-जवार, उसकी भाषा-बोली, उसके लोग, उसके पशु-पक्षी, उसकी फसल-नदी, उसके हाट-बाजार, उसके तालाब-त्योहार, उसके किसान-कामगार अपने पूरे वजूद के साथ दिखाई देंगे. वे इनमें इस कदर गुथे मिलेंगे कि कोई भी भौतिक या रासायनिक प्रक्रिया उन्हें अलग नहीं कर सकती. (फाइल फोटो)

केदारनाथ सिंह

जन्म 20 नवम्बर 1934
निधन 19 मार्च 2018
जन्म स्थान ग्राम चकिया, जिला बलिया, उत्तर प्रदेश
कुछ प्रमुख कृतियाँ
अभी बिल्कुल अभी, ज़मीन पक रही है, यहाँ से देखो, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, बाघ, तालस्ताय और साइकिल
विविध
कविता संग्रह ” अकाल में सारस” के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989), मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, कुमार आशान पुरस्कार (केरल), दिनकर पुरस्कार, जीवनभारती सम्मान (उड़ीसा) और व्यास सम्मान सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित.

केदारनाथ सिंह अज्ञेय द्वारा सम्पादित तीसरा सप्तक के कवि थे. 2013 में केदारनाथ सिंह की सेवाओं के लिए उन्हें साहित्य के सबसे बड़े सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले वह हिन्दी के 10वें लेखक हैं.

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