शादी के नाम पर फिजूल खर्च और दिखावे के चक्कर में पीस रहे मध्यम वर्ग के लोग

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शादी के नाम पर फिजूल खर्च और दिखावे के चक्कर में पीस रहे मध्यम वर्ग के लोग
समाज को दिखाने के लिए कर्जदार बन रहे ग्रामीण क्षेत्र के लोग 

 

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हमारे समाज में बहुत सी बुराइयां इतनी खामोशी से दाखिल हुई हैं कि इनसे जूझने के बावजूद हम इन्हें बुराइयां मानने को राजी नहीं हैं.

इनमें से एक बुराई शादी में किया जाने वाला बेतहाशा खर्च है. हालांकि, हम यह जानते हुए भी कि समाज की बहुत सी बीमारियों की जड़ में फैली हुई है, पर इसे बुराई मानने को तैयार नहीं हैं. चाहे हमें कर्ज तक ही क्यों न लेना पड़े, मगर हम अपनी झूठी शान को बनाये रखने के लिए शादी में खूब खर्च करते हैं.

यहां हम जो बात कर रहे हैं, उसमें दहेज के खर्चे नहीं, बल्कि अपनी शान दिखाने वाले वे खर्चे हैं, जिनसे अगर बचा जाये, तो उम्र हो जाने के बाद भी शादी-ब्याह में होने वाली देरी को दूर किया जा सकता है. हैरत की बात तो यह है कि जब आप अपनी बेटी की शादी करने वाले होते हैं, तब तो आपको ये खर्च बहुत चुभते हैं.

मगर, जब आप अपने लड़के की शादी करने निकलते हैं, तब आप की मांग यह होती है कि आपकी इज्जत का ख्याल रखते हुए बारातियों का शानदार स्वागत हो और आप बारातियों की संख्या पर भी काबू नहीं रखना चाहते हैं.

अति तो तब होती है, जब बारात किसी एक शहर से दूसरे शहर रेल से जानी हो. तब आप किराया भी लड़की वालों पर डाल देते हैं. सिर्फ आपके हाथ में भीख का कटोरा नहीं होता है, मगर आप की मांग वैसी ही लगती है. अब तो लड़की वाले मजबूर होकर लड़के के शहर ही चले जाते हैं, जहां कोई मैरिज हाल आदि किराये पर लेकर वहीं से शादी कर देते हैं.

ऐसा करते हुए लड़की वालों पर यह दबाव रहता है कि किस रिश्तेदार को शामिल करें और किसको नहीं. अगर इन तमाम हालात को देखें, तो हम समझ सकते हैं कि एक जोड़े की नयी जिंदगी शुरू करने के लिए इन सब खर्चों की जरूरत नहीं होती है, बल्कि दो परिवारों के करीब आने के साथ-साथ दो दिलों के भी समीप आने का मामला है.

उसमें खर्च से कुछ खास अंतर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि हम आये दिन देखते हैं कि अक्सर शान से की गयी शादियों में भी कड़वाहट घुल जाती है.

वहीं यह भी देखा गया है कि इन शादियों में सजावट के फूल तक भी विदेशों से मंगाए जाते हैं. इसके अलावा व्यंजनों का तो कहना ही क्या. एक-एक शादी में परोसे जाने वाले व्यंजनों की संख्या सैकड़ों तक, इतनी चीजें कि देखकर ही पेट भर जाए.

इसी तरह सैकड़ों किस्म के पेय, उम्दा किस्म की शराब और दिए जाने वाले गिफ्ट, महंगे मोबाइल, गहनों, कारों, कपड़ों से लेकर ऐसे उपहार कि कोई गिनती ही नहीं. हवाई यात्रा की टिकटों से लेकर लग्जरी कारों और लग्जरी बसों की सुविधाएं भी.

बारातें भी कभी रथों में आती हैं तो कभी हेलिकाप्टर से. दुल्हनें भी तरह-तरह से विदा होती हैं. इन सारे आयोजनों के लिए बड़ी-बड़ी इवेंट मैनेजमेंट कम्पनियां हरदम तैयार रहती हैं, वे भी करोड़ों वसूलती हैं. ऐसे दिखावे में लोग कर्ज में डूब जाते हैं, और बाद में उनको पूरे जीवन में परेशानी उठानी पड़ती है.

पहले लोग पड़ोसी या अपने आसपास की नकल करते थे कि फलां ने अपने यहां वह बैंड मंगाया था हम भी वही मंगाएंगे. फलां ने अपनी लड़की को दस तोले सोना दिया था मैं बारह दूं. लेकिन अब सब पड़ोसियों के साथ-साथ टीवी पर और अखबारों में लाइफ स्टाइल्स सप्लीमेंट्स देखकर और बड़े लोगों के यहां होने वाली शादियों के बारे में पढ़कर, उसी तरह की शादी करना चाहते हैं.

इस स्पर्धा के कारण आम आदमी के लिए बेटी की शादी कितनी आफत की तरह आती है. समाजसेवी संगठन इन बातों पर चिंता प्रकट करते रहते हैं. लड़कियों को जन्म से पहले ही मार देने का कारण शादी के भारी-भरकम खर्चों से जोड़ा जाता है. मगर जिसके पास पैसे हैं, वह इस बारे में शायद ही कभी सोचता है.

दिखावे के चक्कर में फसते जा रहे मिडिल क्लास के लोग : अंकिता यादव


अंकिता यादव ने बताया की हल्दी रस्म के दौरान हजारों रूपये खर्च कर के विशेष डेकोरेशन किया जाता है, उस दिन दूल्हा या दुल्हन विशेष पीत (पीले) वस्त्र धारण करते हैं. साल 2020 से पूर्व इस हल्दी रस्म का प्रचलन ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं पर भी देखने को नहीं मिलता था, लेकिन पिछले दो-तीन साल से इसका प्रचलन बहुत तेजी से ग्रामीण क्षेत्र में बढ़ा है.

पहले हल्दी की रस्म के पीछे कोई दिखावा नहीं होता था, बल्कि तार्किकता होती थी. पहले ग्रामीण क्षेत्रों में आज की तरह साबुन व शैम्पू नहीं थे और ना ही ब्यूटी पार्लर था. इसलिए हल्दी के उबटन से घिसघिस कर दूल्हे-दुल्हन के चेहरे व शरीर से मृत चमड़ी और मेल को हटाने, चेहरे को मुलायम और चमकदार बनाने के लिए हल्दी, चंदन, आटा, दूध से तैयार उबटन का प्रयोग करते थे. ताकि दूल्हा-दुल्हन सुंदर लगे.

इस काम की जिम्मेदारी घर-परिवार की महिलाओं की थी. लेकिन आजकल की हल्दी रस्म मोडिफाइड, दिखावटी और मंहगी हो गई है. जिसमें हजारों रूपये खर्च कर डेकोरेशन किया जाता है. महंगे पीले वस्त्र पहने जाते है. दूल्हा—दुल्हन के घर जाता है और पूरे वातावरण, कार्यक्रम को पीताम्बरी बनाने के भरसक प्रयास किये जाते हैं. यह पीला ड्रामा घर के मुखिया के माथे पर तनाव की लकीरें खींचता है. जिससे चिंतामय पसीना टपकता है.

पुराने समय में जहां कच्ची छतों के नीचे पक्के इरादों के साथ दूल्हा-दुल्हन बिना किसी दिखावे के फेरे लेकर अपना जीवन आनंद के साथ शुरू करते थे, लेकिन आज पक्के इरादे कम और दिखावा और बनावटीपन ज्यादा होने लगा है.

आजकल देखने में आ रहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में आर्थिक रूप से असक्षम परिवार के लड़के भी इस शहरी बनावटीपन में शामिल होकर परिवार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ा रहे है. क्योंकि उन्हें अपने छुट भईए नेताओं, वन साइड हेयर कटिंग वाले या लम्बे बालों वाले सिगरेट का धुंआ उड़ाते दोस्तों को अपना ठरका दिखाना होता है. इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि के लिए रील बनानी है.

ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे घरों में फिजूल खर्ची में पैसा पानी की तरह बहाया जाता है जिनके मां-बाप ने हाड़-तोड़ मेहनत और पसीने की कमाई से पाई-पाई जोड़ कर मकान का ढांचा खड़ा किया लेकिन ये नवयौवन लड़के-लड़कियां बिना समझे अपने मां-बाप की हैसियत से विपरीत जाकर अनावश्यक खर्चा करते हैं.

जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो उन परिवारों के बच्चों को मां-बाप से जिद्द करके इस तरह की फिजूल खर्ची नहीं करवानी चाहिए. आजकल काफी जगह यह भी देखने को मिलता है कि बच्चे (जिनकी शादी है) मां-बाप से कहते है आप कुछ नहीं जानते, आपको समझ नहीं है, आपकी सोच वही पुरानी अनपढ़ों वाली रहेगी, यह कहते हुए अपने माता-पिता को गंवारू, पिछड़ा हो कहते हैं.

 

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