जिसे जीव से प्रेम नहीं, वह परमात्मा को भी स्वीकार्य नहीं

सिकन्दरपुर (बलिया)। जिस जीव को प्रेम नहीं आता, जो स्वयं को बड़ा जपी तपी साधक व पंडित होने का ढोंग रचता है व रोजाना लाखों मनके फेरता हो, उसे परमात्मा कभी स्वीकार नहीं करते. परमधाम डूंहा में आयोजित अद्वैत शिवशक्ति यज्ञ एवं गीता प्रवचन कार्यक्रम में द्विजानंद ब्रह्मचारी ने यह विचार व्यक्त किया.

कहा कि ये अवगुंण केवल अहंकार पैदा करके उस ज्योतिपुंज को उसी प्रकार ढक लेते हैं जिस प्रकार अमरबेल किसी भी विजातीय पौध को ढक लेती है. इसलिए हमें अहंकारी दुर्गुणों से दूर रख सदपथ पर लाने वाले संत सदगुरु का आह्वान करना चाहिए. स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी ने कहा कि हवा कहां से आती है व कहां जाती है, यह कोई नहीं जानता. उसी तरह हमें यह नहीं पता कि प्राण कहां से आता है व कहां जाता है. बावजूद इसके जिस प्रकार हमें हवा का बोध त्वचा से होता है. उसी प्रकार गुरुदेव रुपी दिव्य कवच को हम धारण कर अपने आत्मा की अनुभूति कर सकते हैं. अमरजीत सिंह, सराय भारती, समर मौर्य, रविंद्र राय, लखनदास आदि विशिष्टजन मौजूद रहे.

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