जिसे जीव से प्रेम नहीं, वह परमात्मा को भी स्वीकार्य नहीं

जिस जीव को प्रेम नहीं आता, जो स्वयं को बड़ा जपी तपी साधक व पंडित होने का ढोंग रचता है व रोजाना लाखों मनके फेरता हो, उसे परमात्मा कभी स्वीकार नहीं करते. परमधाम डूंहा में आयोजित अद्वैत शिवशक्ति यज्ञ एवं गीता प्रवचन कार्यक्रम में द्विजानंद ब्रह्मचारी ने यह विचार व्यक्त किया.