क्षेत्रीय मौसम परिवर्तन की देन है शीत लहर, बचाव ही है उपाय: डा. गणेश पाठक

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बलिया। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुबेछपरा के पूर्व प्राचार्य एवं पर्यावरणविद् डा. गणेश पाठक ने एक भेंट वार्ता में बताया कि शीत लहर का प्रकोप मौसमी परिवर्तन की देन है. इसी लिए इसे वायुमण्डलीय प्रकोप भी कहा जाता है. शीत लहर का प्रकोप तब जारी होता है, जब तापमान में अचानक तीव्र एवं बड़ी मात्रा में गिरावट होती है, तथा तापान्तर में अधिक अन्तर आ जाता है. तापमान अत्यन्त कम हो जाने के कारण तेजी से ठंढक बढ़ती है और यदि इसी समय पश्चिमी वायु प्रवाहित होने लगती है तो वायु भी अत्यन्त शीतल हो जाती है और अति ठंढ से युक्त ऐसी हवा को ही शीत लहर कहा जाता है.

प्रसिद्ध भौतिक भूगोलवेत्ता प्रो. सविन्द्र सिंह के अनुसार किसी विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में कुछ दिनों से लेकर कतिपय सप्ताहों तक तापमान के औसत सामान्य तापमान से बहुत नीचे बने रहने की चरम दशा को शीत लहर कहते हैं. संयुक्त राज्य मौसम सेवा के अनुसार 24 घण्टे की अवधि में तापमान में त्वरित गिरावट की दशा शीत लहर होती है.
भौगोलिक स्थितियों के अनुसार शीत लहर के लिए तापमान का मापदण्ड बदलता रहता है. जैसे भारत में उत्पन्न शीत लहर की दशा को संयुक्त राज्य अमेरिका अथवा यूरोपीय देशों में शीत लहर नहीं माना जा सकता. इसी तरह मैदानी क्षेत्रों एवं पर्वतीय क्षेत्रों की शीत लहर की दशा में भी अन्तर होता है. कारण कि स्थान के अनुसार शीत को बर्दाश्त करने की क्षमता अलग-अलग होती है .
शीत लहर के सही- सही मापदण्ड का निर्धारण तापमान के कम होने की दर एवं निचले स्तर पर तापमान पहुँचने की दर के आधार पर किया जाता है. भौगोलिक क्षेत्र एवं वर्ष के समय के आधार पर न्यूनतम तापमान आधारित होता है. अपने देश में खासतौर से बलिया, पूर्वांचल सहित पूरे उत्तरी भारत में शीत लहर का प्रकोप दिसम्बर एवं जनवरी में जारी होता है. जिसका मुख्य कारण यह है कि इस समय शीत ऋतु रहती है और इस शीत ऋतु में पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फबारी होती है और उस क्षेत्र से जब ठंढी हवाएं मैदानी भाग मे प्रवेश करती हैं तो मैदानी भाग का तापमान काफी गिर जाता है. यदि हवा में जरा भी तेजी रही तो शीत लहर का प्रकोप जारी हो जाता है.
इस शीत लहर का प्रकोप तब और बढ़ जाता है जब पछुवा प्रवाह, जिसे पश्चिमी विक्षोभ भी कहा जाता है, का आगमन मैदानी क्षेत्रों में हो जाता है. चूँकि यह पछुवा हवा अत्यन्त शीतल होती है, इसलिए मैदानी भागों का तापमान काफी नीचे आ जाता है. पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान जहाँ शून्य से काफी नीचे चला जाता है, वहीं मैदानी क्षेत्रों, यहाँ तक कि बलिया एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी जिलों में भी न्यूनतम तापमान एक से दो डिग्री तक नीचे आ जाता है जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है.
शीत लहर के प्रकोप से एक तरफ जहाँ जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है, वहीं फसलों खासतौर से दलहनी एवं तिलहनी फसलों एवं आलू की फसल को विशेष नुकसान होता है. वृद्ध एवं बच्चों पर ठंढ का विशेष असर पड़ता है. श्वांस संबंधी बीमारिया, उच्च रक्त चाप एवं कोल्ड डायरिया जैसे रोगों में वृद्धि हो जाती है. इनसे बचने का एक ही उपाय है कि जैसे भी हो शीत लहर से बचा जाय. फसलों पर विशेष दवाओं का छिड़काव कर प्रकोप से बचा जा सकता है.