मौसम परिवर्तन के साथ ही नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है. रात हो या दिन हर समय लोग मच्छरों का डंक झेल रहे हैं, जिसकी वजह से डेंगू के साथ ही अन्य खतरनाक बीमारियों के फैलने की आशंका प्रबल हो गई है.
बांसडीह व आसपास के क्षेत्रों में शुक्रवार को प्रभारी निरीक्षक दीप कुमार के नेतृत्व में बीएसएफ़ के जवानों के साथ होली व मतगणना के मद्देनजर फ्लैग मार्च निकाला गया.
होली यानि फागुन मस्ती का त्योहार है. रंग की पहली याद गांव से ही शुरू होती है. बहुत दिन नहीं हुए, अभी एक दशक पहले तक गांव के सभी बुर्जुग, यूवा घर-घर जाकर फाग गाते थे.
अब होली के त्योहार पर आम जन मानस भी जागरूक होता जा रहा है. अब सभी लोग रसायनिक रंगों से परहेज करना करना चाहते हैं और उसके स्थान पर हर्बल प्राकृतिक रंगों से होली मनाना चाहते हैं, किंतु उन्हें बाजारों में हर्बल रंग ढ़ूंढ़ें नहीं मिल रहा है.
बुधवार को रेवती थाना प्रांगण में होली के मद्देनजर शांति समिति की बैठक एसडीम बांसडीह राधेश्याम पाठक एवं एसडीएम बैरिया अखिलेश मिश्र के संयुक्त अध्यक्षता में संपन्न हुई.
होली के त्यौहार के मद्देनजर पीस कमेटी की एक बैठक स्थानीय पुलिस चौकी के प्रांगण में हुई. इसमें त्योहार के अवसर पर नगर में साफ-सफाई बिजली व पानी की उपलब्धता के बारे में चर्चा कर त्यौहार को आपसी सहयोग से सौहार्दपूर्ण वातावरण में मनाने का निर्णय लिया गया.
उपजिलाधिकारी बांसडीह राधेश्याम पाठक की अध्यक्षता में बांसडीह कोतवाली परिसर में पीस कमेटी की बैठक संपन्न हुई. बैठक में उपजिलाधिकारी राधेश्याम पाठक ने कहा कि होली आपसी सौहार्द का भाईचारे का त्यौहार है. आपस में सामंजस्य बनाकर होली माननी चाहिए.
होली पर्व व इस पर्व के ठीक बाद यूपी बोर्ड कर परीक्षा शुरू होने को लेकर अभिभावकों छात्र, छात्राओं की चिंता खासी बढ़ गयी है. बताते चलें कि पढ़ायी लिखायी के ऐन मौके पर चुनाव के आ जाने से परीक्षार्थियों को वैसे भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
होली मिलावट का जहर आपकी त्यौहार की खुशियों में खलल डाल सकता है वैसे भी त्योहारों पर तरह-तरह के व्यंजन बनाये जाते हैं और होली मिलन घर आने वाले लोगो का स्वगात भी अबीर गुलाल और मिठाइयों के साथ किया जाता है.
डीएम ने सफाई, चिकित्सा व्यवस्था आदि को बेहतर बनाए रखने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए. इसके अलावा त्यौहार के दौरान शराबबंदी के आदेश का अनुपालन भी कड़ाई से कराने को कहा.
बसंत पंचमी बीत गई फागुन चल रहा है, अब चौपाल से उठते चौताल और फाग के बीच ढोलक के सुर नहीं सुनाई देते हैं. अब तो लोग कैलेंडरों पर ही तारीख और दिन देख-देखकर निर्भर रहते हैं. गांव हो या नगर बस यही लगता है कि बिसर गईल फाग भूल गई चाईता.