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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि बैरिया के उप जिलाधिकारी आत्रेय मिश्र ने कहा कि विद्यार्थी जीवन में लक्ष्य का बड़ा ही महत्व है, आप सब लोग अपना लक्ष्य जरूर निर्धारित करें और यह ध्यान रहे कि लक्ष्य बड़ा हो और उसके लिए जो भी इस प्रकार की तैयारी करनी है वैसी तैयारी में जी जान से लग जाए तभी सफलता मिलेगी. बिना तैयारी के कठिन साधना के लक्ष्य मिलेगा नहीं.

आठवें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय के योग एवं नेचुरोपैथ विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर नीरज कुमार पाण्डेय ने आसनों का लाभ बताते हुए कहा कि आजकल भागदौड़ की जिंदगी में व्यक्ति अपने को स्वस्थ नहीं रख पा रहा है. किसी व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य का अर्थ है कि शरीर किसी बीमारी से प्रभावित नहीं है. आसनों के जिक्र करते हुए भ्रामरी प्राणायाम के बारे में बताया कि अगर आप डिप्रेशन से ग्रसित है तो भ्रामरी प्राणायाम इसका रामबाण उपचार है तथा वज्रासन के लाभ बताते हुए कहा कि यह एक ऐसा आसन है जो भोजन करने के उपरांत किया जाता है.


आयोजित गोष्ठी में निदेशक, शैक्षणिक, डाॅ पुष्पा मिश्र ने विद्यार्थियों को यातायात के नियमों का पालन करने की सीख दी. कहा कि यातायात के नियम आपको दुर्घटना से बचाने के लिए हैं, अतः इसका पालन आपको स्वतः करना चाहिए. डाॅ प्रियंका सिंह, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, समाजशास्त्र व डाॅ अजय चौबे, एसोसिएट प्रोफ़ेसर, अंग्रेजी ने भी विद्यार्थियों को सड़क सुरक्षा के विभिन्न आयामों मसलन तेज रफ्तार से न चलना, नशे में गाड़ी न चलाना, सिग्नल का पालन करना आदि को अपनाने को प्रेरित किया.


उभांव थाना क्षेत्र के मझौवा गांव में शुक्रवार को धर्मेंद्र राजभर की बेटी की शादी के दौरान घर पर आई बारात में नाचे में हुई फायरिंग में बारात करने आया गोलू 15 वर्ष पुत्र विजयनाथ राजभर निवासी हर्दिया थाना सिकंदरपुर के पेट में गोली लग गई. गोली लगते ही वहां अफरा-तफरी मच गई. आनन-फानन में किशोर को सीयर समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में प्राथिमक उपचार के लिये लाया गयाप


अध्ययन के दौरान विद्यालय की प्रधानाध्यापिका पूनम देवी ने बच्चों के खेलकूद के विकास पर माता पिता की भूमिका के बारे में कुछ जानकारी स्वयं दी. अध्ययन के अंतर्गत सहायक प्रोफेसर वंदना सिंह यादव ने बच्चों को बताया की स्वस्थ मस्तिष्क में ही स्वस्थ बुद्धि का विकास होता है तथा बच्चे किस प्रकार की वस्तुओं से खेलना पसंद करते हैं और यह भी बताया कि हर मौसम का अलग अलग खेल होता है.



इस टास्क फोर्स में विश्वविद्यालय के फोरम ‘ लिविंग लिजेंड्स ऑफ बलिया’ के सदस्यों में से प्रो रमेश चन्द्र श्रीवास्तव, कुलपति, डाॅ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, समस्तीपुर, बिहार, प्रो गोपाल नाथ तिवारी, पूर्व प्रोफेसर, आई आई टी, दिल्ली, प्रो आनंद चौधरी, आयुर्वेद संकाय, बी एच यू, निर्भय नारायण सिंह, भारतीय रेल सेवा एवं डाॅ अवनीन्द्र सिंह, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर सम्मिलित रहे. जिनके साथ मिलकर कुलपति प्रो कल्पलता पाण्डेय ने विश्वविद्यालय के विकास के लिए विचार विमर्श किया.

डॉ. गोपाल कृष्ण परिहार ने वर्तमान परिस्थिति में ‘संविधान की उपादेयता’ पर आधारित अपना विशिष्ट व्याख्यान दिया. उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित सभी प्रतिभागियों को संविधान की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, निर्माण समितियों, संविधान की संरचना, मौलिक अधिकार-नीति निर्देशक तत्व-कानूनी अधिकार की संकल्पना व इनके मध्य विभेद से सभी को अवगत कराया. डॉ. परिहार ने संविधान संशोधन प्रक्रिया, न्यायपालिका व कार्यपालिका की भूमिका, इत्यादि के विषय में भी सभी के साथ जानकारी साझा की.

विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय द्वारा छात्रों को शोध एवं नवाचार के लिए प्रोत्साहित किया गया. कुलपति द्वारा मुख्य अतिथि को एक औषधि पौधा भेट किया गया. विश्वविद्यालय में हार्टिकल्चर विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अमित कुमार सिंह ने बताया कि हर्बल वाटिका में लगभग 150 से अधिक विभिन्न प्रकार के औषधीय गुणों से परिपूर्ण पौधे लगाए गए है.




प्रो. पाण्डेय जे एन सी यू की कुलपति होने के पूर्व महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के शिक्षा संकाय में विभागाध्यक्ष और संकायाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुकी हैं. अपने 32 वर्षों के अध्यापनकाल में प्रो. पाण्डेय ने शिक्षक शिक्षण के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय एवं नवाचारी कार्य किये हैं. जिसके लिए प्रो. पाण्डेय को इसके पूर्व भी भारत विकास अवार्ड, इमिनेंट एजुकेशनिस्ट अवार्ड जैसे कई सम्मान प्राप्त हो चुके हैं. शिक्षक शिक्षण के क्षेत्र में आपकी विशेषज्ञता का लाभ जे एन सी यू को भी प्राप्त हो रहा है

प्रोफेसर कल्पलता पाण्डेय ने बताया कि मौलिक विचार मातृ भाषा में ही अधिकतर आते हैं और संपर्क भाषा, क्षेत्रीय भाषा आदि शिक्षा के क्षेत्र में भी सर्वोत्तम आगत को प्रोत्साहन देते हैं. भाषा अधिगम के साथ ही संस्कृति के हस्तांतरण का प्रमुख माध्यम है जो छात्र को शिक्षा व संस्कृति से जोड़ भी सकती है व विमुख भी कर सकती है.
