दारुण आघात दे गया महान गणितज्ञ वशिष्ठ बाबू का जाना

बलिया: दारुण आघात दे गया महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का जाना.

वही वशिष्ठ बाबू जिन्होंने आइंस्टिन के सिद्धांत को चुनौती दी थी. वही, जिनसे प्रेरित होकर फिल्मकार प्रकाश झा ने फिल्म डाइरेक्ट करने पर विचार किया था. वही शख्स, जिन्होंने अमेरिकी स्पेस एजेंसी National Aeronautics & Space Administration (NASA) में अपने इल्म का लोहा मनवाया था. और भी न जाने कितनी उपलब्धियां वशिष्ठ बाबू के नाम रही होंगी.ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे.

उनके इल्म का अंदाजा लगाने के लिए एक उदाहरण ही काफी होगा. वर्ष 1969 में जब अमेरिका ने अपोलो-11 को लांच करने से पूर्व स्पेस सेंटर के 31 कम्प्यूटरों ने काम करना बंद कर दिया था, तब वशिष्ठ बाबू और कंप्यूटरों की गणना (कैलकुलेशन) में एक ही थी.

उनका वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं रहा. उनकी संगिनी ने उनका साथ छोड़ दिया और अपने मायके चली गयीं. एक प्रतिभा संपन्न शख्स इस वेदना को नहीं सह सका. इसके कारण उनके दिमाग में खलल पैदा हुई, जो आगे चलकर सिजोफ्रेनिया में तब्दील हो गयी. इस बीमारी ने आखिरी दिन तक के लिए उनसे नाता जोड़ लिया था.

बिहार के भोजपुर जिले के आरा ब्लॉक का एक गांव बसंतपुर. वहां वशिष्ठ बाबू का जन्म 2 अप्रैल 1942 में एक सामान्य परिवार में हुआ. शुरुआती पढ़ाई नेतरहाट बिहार (वर्तमान झारखंड) में पूरी कर आगे की पढ़ाई करने पटना यूनिवर्सिटी पहुंचे. पटना के साइंस कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अगर प्रोफेसर कहीं गलत होते थे तो उनको टोकने से भी वशिष्ठ बाबू नहीं चूकते थे.

जब वशिष्ठ बाबू कॉलेज में पढ़ ही रहे थे, उस समय कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन केली की उन पर नजर पड़ी. प्रो.केली के कहने पर वह वर्ष 1965 में अमेरिका चले गये और वहां से उन्होंने वर्ष 1969 में Ph.D भी की. इसके बाद वह वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में बतौर एसोसिएट प्रोफेसर नियुक्त भी हो गये.

अमेरिका में वशिष्ठ बाबू ने कई नौकरियां की मगर वहां उनका मन नहीं रम सका. लिहाजा, वर्ष 1971 में वह भारत लौट आये. यहां भी उन्होंने IIT कानपुर, IIT मुंबई और ISI कोलकाता में भी नौकरी कीं. इस दौरान उनकी बीमारी उनपर हावी होने लगी. आखिरी दिनों में भी उनका खोजी मस्तिष्क खोज में ही लगा रहता.

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