Category: अध्यात्म
मनियर थाना क्षेत्र में नाग पंचमी की पूजा धूमधाम से घरों में एवं मंदिरों पर भी हुआ. मनियर थाना क्षेत्र के ही मुड़ियारी गांव में रामजीत बाबा का स्थान है. बताया जाता है कि वहीं से मिट्टी लाकर करीब 100 वर्ष पूर्व अकलू राजभर निवासी असना अपने गांव में रामजी बाबा के नाम से पिण्ड स्थापित किया था जो अब मंदिर बन गया है
नगर के बुढ़वा शिव मंदिर, दक्षिण टोला स्थित महादेव मंदिर, रामलीला मैदान स्थित शिव मंदिर, बड़ी मठिया स्थित चंद्रमौली महादेव मंदिर, उत्तर टोला स्थित शिव मंदिर,मौनी बाबा स्थल का शिव मन्दिर,पुराना पोस्ट आफिस के समीप स्थित शिव मन्दिर सहित विभिन्न मंदिरों में भक्तों का जनसैलाब देर शाम तक पूजन अर्चन में तल्लीन रहा.
तपस्वी को एक दिन सपने में भोलेनाथ ने( सीता अवनी) छितौनी में होने का संकेत दिया. और कहा कि इतनी दूर मत जाओ मैं यही हुं , फिर आस पास के ग्रामीणों के सहयोग से उक्त स्थान पर खुदाई की गई . खुदाई के उपरांत छितौनी में ही इस शिवलिंग का विग्रह प्राप्त हुआ. इस शिव लिंग को ऊपर लाने का बहुत प्रयास किया गया. जब जब शिवलिग को ऊपर लाने का प्रयास होता तब तब शिवलिंग उतना ही नीचे चला जाता. तभी भगवान भोलेनाथ महात्मा के रूप में प्रकट होकर गाँव के लोगों को दर्शन देकर इसी तरह शिवलिंग की पूजा अर्चना करने की सलाह दी और इस शिवलिंग को छितेश्वर नाथ महादेव का नाम देकर अंतर्ध्यान हो गए.
कलश यात्रा विश्व हिंदू परिषद के जिलाध्यक्ष मंगलदेव चौबे की देखरेख में व डॉ सन्तोष तिवारी के निर्देशन में गुरुद्वारा रोड स्थित हनुमान मंदिर से प्रारम्भ होकर चौक, सेनानी उमाशंकर सिंह चौराहा, आर्य समाज रोड, मालगोदाम रोड होते हुए एलआईसी मालगोदाम रोड पर स्थित विनीत लॉज के सामने वाले नवनिर्मित भवन में कथा स्थल पर पहुंचेगी.
बलिया – बांसडीह मार्ग स्थित बड़सरी गांव से करीब एक किमी पश्चिम सुरहताल के किनारे बाबा अवनीनाथ महादेव मंदिर प्राचीन काल से स्थापित है. जहां पहुंचने पर पर्यावरण से सुसज्जित स्थल पर एक अलग अनुभूति तो होती है. बुजुर्गों के अनुसार उक्त मंदिर की ऐसी महत्ता है कि जो अवनी नाथ महादेव मंदिर में जाकर अपनी विनती सुनाता है उसकी मन्नत पूर्ण हो जाती है.
ग्रामीणों के मुताबिक बांसडीह के राजा रहे शुभ नारायण पांडे जंगल में स्थित किसी चीज की खुदाई करा रहे थे कि इसी बीच उनको खम्भे के आकार का एक शिवलिंग दिखाई दिया. शुभ नारायण पांडे इस शिवलिंग को बांसडीह नगर में लाकर स्थापित करना चाहते थे. लेकिन खुदाई के बाद भी शिवलिंग जमीन से बाहर नहीं आ सका और वहां खून की धारा बहने लगी.