वीरेंद्र नाथ मिश्र
बैरिया: गंगा और घाघरा नदी के कटान से बचाने के लिए सरकार ने पिछले पांच दशकों में अब तक करीब 300 करोड़ रुपये खर्च किये हैं. बावजूद इसके अभी भी कटान से लोगों को नहीं मिली है मुक्ति.
कई स्थानों पर अभी भी दोनों नदियों की कटान का कहर जारी है. लोगों की खेती की जमीन, मकान नदियों में समा रहे हैं. बाग-बगीचे नदियों में विलीन हो गए.
उल्लेखनीय है कि हांसनगर से जयप्रकाशनगर तक करीब तीन दर्जन गांव पिछले पांच दशकों में गंगा में समा चुके हैं. वहीं दतहां से सिताब दियारा तक करीब एक दर्जन गांवों का भौगोलिक परिदृश्य घाघरा की कटान ने बदल दिया है.
एनएच 31 यानी बैरिया-बलिया बंधा के दक्षिण में दुबहड़, भरसर, अगरौली, राजपुर, एकौना, उदवंत छपरा, नेमछपरा, नवका गांव, हल्दी, हांसनगर, बादिलपुर, गायघाट, पोखरा, रुद्रपुर, डांगरबाद, गरयां, बेलहरी दक्षिणी, जग छपरा, मझौवां, शुक्ल छपरा, धर्मपुरा, पचरुखिया, नारायणपुर, तेलियाटोक, मीनापुर, दुर्जनपुर, हरिसेवक छपरा, हर छपरा, केहरपुर, श्रीनगर आदि गांव बसे थे.
ये गांव गंगा में विलीन होने के बाद एनएच 31 के उत्तर की तरफ दोबारा बस चुके हैं. वहीं नरदरा, भुसौला, जगदीशपुर, गड़ेरिया भी गंगा में पूर्णरुपेण या आंशिक रूप से समा चुके हैं. इन गांवों के लोग भी बीएसटी बंधा के भीतर बसने लगे हैं. भूमिहीन और गरीब लोग अभी भी बंधे पर शरण लिए हुए हैं.
घाघरा के बाढ़ से दतहां पूरी तरह तबाह हो चुका है. तिलापुर के लोग तबाही के कगार पर हैं. वहीं देवपुर मठिया, वशिष्ठ नगर, गोपाल नगर, मानगढ़, शिवाल मठिया, टोला फतेराय, बकुल्हा और चांद दियर के सामने कटान तेजी पर है.
इब्राहिमाबाद नौबरार (अठगांवा) के समाप्त होने के बाद जब बीएसटी बंधे पर खतरा मंडराने लगा तब यहां लगभग 88 लाख की लागत से कटानरोधी कार्य शुरू कराकर कटान रोकने का प्रयास चल रहा है.
बताते चलें कि मझौवां में कटान रोकने के लिए करीब 50 करोड़ की लागत से सरकार ने कटानरोधी कार्य कराया. वहां कटान रुका तो पचरुखिया के पूरब गंगा में कटान होने लगा, वहां भी करीब 30 करोड़ की लागत से कटानरोधी कार्य कराया गया. इसके बाद दुबेछपरा के पास गंगा का कटान तेज हो गया.
श्रीनगर और केहरपुर को जब गंगा ने निगल लिया तब वहां भी 40 करोड़ का कटानरोधी का कार्य कराया गया. भुसौला, नरदरा, जगदीशपुर में भी कटान रोकने के लिए अब तक 30 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं. बावजूद इसके वहां कटान जारी है. सुघर छपरा और रामगढ़ के पास भी कटान हो रहा है.
दूसरी तरफ दतहां में लगभग 60 करोड़ रुपये खर्च कर कटानरोधी कार्य शुरू कराकर श्रीनगर-तुर्तीपार बंधे को सरकार ने सुरक्षित किया तो तिलापुर के पास कटान शुरू हुआ. वहां भी करोड़ों लगाये गये.
अब उसके पूरब देवपुर मठिया, वशिष्ट नगर, गोपाल नगर, मानगढ़, शिवाल मठिया, टोला फतेराय और चांद दियर के सामने घाघरा का कटान तेज हो गया है. अठगांवा के कटान खत्म होने के बाद 88 करोड़ की लागत से यहां कटानरोधी कार्य जारी है.
लोगों का कहना है कि कटानरोधी कार्यों में अब तक जितना पैसा खर्च किया जा चुका है, उतने में दोनों नदियों में हांसनगर से सिताब दियारा और दतहां से अठगांवा तक पक्का घाट बन गया होता. जैसे वाराणसी और हरिद्वार में बने हैं. सरकार में बैठे लोग और बाढ़ विभाग जानबूझ कर स्थाई हल निकालना नहीं चाहते क्योंकि नदियों का कटान उनकी कमाई का साधन है.
बाढ़ विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम लोग सरकार की योजनाओं को कार्यरूप देते हैं. शासन का जो आदेश होता है वही सिंचाई विभाग करता है. इसमें अवैध कमाई का आरोप बेबुनियाद है.