अज़रबैजान का अद्भुत शिव मंदिर -कैस्पियन सागर के किनारे अज़रबैजान की राजधानी बाकू में भी शिव का एक प्राचीन मंदिर है

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अज़रबैजान का अद्भुत शिव मंदिर -कैस्पियन सागर के किनारे अज़रबैजान की राजधानी बाकू में भी शिव का एक प्राचीन मंदिर है

 

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कैस्पियन सागर के किनारे अज़रबैजान की राजधानी बाकू में भी शिव का एक प्राचीन मंदिर है. वैसे यह माना जाता है कि यह एक अग्नि मंदिर है, जहां अग्नि पूजक आकर पूजा करते हैं.

वास्तव में यह मंदिर कब और कैसे बना और किसने बनवाया, यह निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, किंतु ऐसी मान्यता है कि यहां पृथ्वी के अन्दर से प्राकृतिक गैसें जलती हुई प्रकट हुई थीं, जिसको लोगों ने अद्भुत शक्ति समझ कर पूजा करना प्रारंभ कर दिया. ऐसा सुनने में आता है कि ज्यूर स्तरन सातवीं सदी में यहां आया था.

उसके दो सदी बाद भारतीय हिंदू व्यापारी भी यहां आए, जिन्होंने इस जलती हुई गैस के ऊपर मंदिर निर्मित करवाया. इस मंदिर के ऊपर एक त्रिशूल भी लगा हुआ है, जिससे यह प्रकट होता है कि यह शिव मंदिर है.

जब यह मंदिर विशेष प्रसिद्धि पा गया तो भारतीय साधु – संत यहां आकर तपस्या – साधना करने लगे. इन साधु – संतों के रहने हेतु इस मंदिर के चारों तरफ गोलाकार रूप में 26 गोल कमरे भी बने हुए हैं. मंदिर के प्रांगण में स्थित शयनागार कक्ष एवं प्रार्थना कक्ष में शिव की लीलाओं से संबंधित अनेक चित्र बने हुए हैं.

अमेरिका एवं यूरोप में शिव पूजा-
अमेरिका में भी शिव पूजा का प्रचलन है बल्कि यों कहा जाय कि यहां शैव आंदोलन चल रहा है फिलाडेल्फिया की विश्व विख्यात पुरातत्वविद् महिला क्रेमलिन ने सम्पूर्ण यूरोप में शैव आंदोलन चला रखा है.

भारत, नेपाल, श्रीलंका एवं अन्य एशियाई देशों तथा यूरोपीय संग्रहालयों एवं मंदिर तथा घरों में शिव की विभिन्न मुद्राओं में प्राप्त प्रतिमाओं की चलती – फिरती प्रदर्शनी का आयोजन कर क्रेमरिश द्वारा सतत् शिव के कल्याणकारी स्वरूप को उजागर करने का प्रयास किया जाता रहा है.न्यूयॉर्क के संग्रहालय में शिव के सद्गृहस्थ रूप में शिव की, अर्धांगिनी उमा को आलिंगित करती हुई एक अति मनोहर प्रतिमा है,जिसकी छवि परम् आह्लादकारी एवं कल्याणकारी है.

मारीशस, फिजी, श्रीलंका आदि देशों में भी अनेक शिव मंदिर एवं शिव प्रतिमाएं हैं,जहां शिव की पूजा की जाती है.इसके अतिरिक्त ज्भी विश्व में जहां कहीं भी हिंदू संस्कृति का प्रभाव है, वहां अन्य देवी- देवताओं के साथ शिव की भी पूजा की जाती है.

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि शिव की पूजा सम्पूर्ण विश्व में की जाती है. अतः शिव एक सार्वभौमिक देव हैं और संभवतः शिव के इसी स्वरूप को देखकर कैलिफोर्निया में लारेंसलिवरमोर की राष्ट्रीय प्रयोगशाला में तैयार विश्व के सबसे शक्तिशाली एक्स-रे संयंत्र का नाम भी ‘शिव’ ही रखा गया है,जिसकी तुलना शिव के तीसरे नेत्र से की गयी हैं.

यही नहीं जब प्रथम आणविक विस्फोट हुआ तो उससे सहस्र सूर्यों के समान अग्नि ज्वाला एवं असह्य ओज – तेज का जो विकिरण हुआ, उसे देखकर रावर्ट ओपेन हैमर जैसे विश्व विख्यात वैज्ञानिक के मुख से भी अनायास ही ‘शिव’ नाम प्रस्फुटित हो उठा.

उन्हें ऐसा आभास हुआ कि आणविक विस्फोट के रूप में शिव का भीषण भस्मकारी तीसरा नेत्र ही खुल गया.किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण विश्व के जनमानस के मन में शिव समाहित हैं.

डाॅ० गणेश कुमार पाठक, बलिया 

 

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