Ganga Dussehra 2021 पर विशेष- बलिया में गंगानदी का जल आज भी शुद्ध

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*यहाँ की गांगेय घाटी
जैव विविधता सेभरपूर,
सूँसों का है बसेरा*

बलिया. आज गंगा दशहरा है. सर्वपापहारिणी गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को ही राजा भगीरथ के कठोर तप से प्रसन्न होकर पृथ्वी पर आयी थी , इसीलिए उन्हें भागीरथी भी कहते है . अध्यात्मतत्ववेता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने कहा कि ‘इनके प्रचण्ड वेग को गंगोत्री में अपनी जटाओं से भगवान शिव ने रोका था ,इस तिथि को दस डुबकियों के साथ स्नान करने एवं दस प्रकार के पुष्पों , दसांग धूप , दस दीपक , दस प्रकार के नैवेद्य ,दस फ़लों , दस ताम्बूल से पूजन करने तथा दस सत्पात्रों को दान देने से तीन कायिक , चार वाचिक और तीन मानसिक दस पापों से मुक्ति मिलती है . इस दिन गंगावतरण की कथा सुनने और महात्मा भगीरथ के कठिन तप को स्मरण करते हुए मां गंगा की मर्यादा बनाये रखने हेतु इन्हे किसी भी प्रकार से प्रदूषित – गन्दा नहीं करने एवं दूसरों को नहीं करने देने का संकल्प करने का शास्त्रोक्त विधान है’.

 


कौशिकेय ने बताया कि अयोध्या का सूर्यवंश जिसमें भगवान राम का जन्म हुआ था इन्ही के पूर्वज राजा सगर की दो रानियां थी केशिनी और सुमति . केशिनी का एक पुत्र हुआ असमंजस और सुमति के साठ हजार पुत्र हुए . एकबार राजा सगर ने अश्वमेद्य यज्ञ किया , इस यज्ञ के घोड़े को चुराकर इन्द्र ने वर्तमान गंगासागर में कपिलमुनि के आश्रम में छिपा दिया . घोड़े खोजते पहुंचे सगर के साठ हजार पुत्र समाधारित मुनि को दोषी ठहराते हुए अपशब्द कहने लगे जिससे उनकी समाधि भंग हो गयी , उनके नेत्रों की दृष्टि पड़ते ही सभी जलकर भस्म हो गये .


अपने इन पूर्वजों को तारने के लिए सूर्यवंश के राजा अंशुमान और दिलीप ने गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के अनेक प्रयत्न किये परन्तु सफ़ल नहीं हो पाये . राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने हिमालय में कठोर तपस्या किया जिससे गंगाजी प्रसन्न हो गयी , उन्होने कहा कि मैं तुम्हारे साथ धरती पर चलने को तैयार हूं परन्तु सबसे बड़ी बाधा है हमारा विनाशकारी वेग जिससे हमारे मार्ग में आने वाले सारे गांव – नगर नष्ट हो जायेगें . तब राजा भगीरथ ने भगवान शिव से प्रार्थना किया कि वह गंगा की धारा के वेग को अपनी जटाओं में धारण कर लें .

 


कौशिकेय ने बताया कि शिवजी द्वारा ऐसा करने के बाद भी गंगा के वेग ने धर्मारण्य में मुनियों के आश्रम को बहा दिया , जिससे रुष्ट होकर विमुक्त क्षेत्र (वर्तमान बलिया उ0प्र0) में तपस्यारत ॠषि जन्हु यहां गंगा की धारा को पी गये, भगीरथ की प्रार्थना पर उन्होने गंगाजी को मुक्त किया था .
इस पौराणिक घटना की स्मृति में गंगा नदी का एक नाम जान्हवी पड़ गया . जन्हु ॠषि के आश्रम से बसा जवहीं नामक गांव आज भी बलिया में गंगा नदी के पार दक्षिण तट पर स्थित है .

 


पौराणिक काल से इस भू-भाग की सफ़ेद रेत पर गंगा अपने जल की गन्दगी धोती आ रही है , जिससे यहाँ गंगा का जल अन्य मैदानी इलाकों से अधिक स्वच्छ शुद्ध रहता है. इसका एक कारण यहाँ की गांगेय घाटी में जैव विविधता की समृद्धि भी है. यहीं उसे आध्यात्मिक ऊर्जा भी सबसे अधिक प्राप्त होती है .