आचार्य चाणक्य के सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं

सिकन्दरपुर. पीडी इण्टर कॉलेज के सभाकक्ष में आचार्य चाणक्य जयन्ती के अवसर पर ‘वर्तमान लोक और तंत्र में आचार्य चाणक्य के विचारों की प्रासंगिकता’ विषयक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम के मुख्य वक्ता शिक्षाविद डॉ विद्यासागर उपाध्याय ने कहा कि जिस तरह से पाणिनि के संस्कृत व्याकरण अष्टाध्यायी ने पूर्व प्रचलित समस्त व्याकरण की पुस्तकों का लोप कर दिया उसी भांति राजनीति शास्त्र के सर्वकालिक महान ग्रंथ अर्थशास्त्र की रचना करके आचार्य चाणक्य ने पूर्व में स्थापित मनु ,शुक्र व भीष्म के राजनय के समक्ष एक बड़ी रेखा खींच दी।


डॉ.विद्यासागर ने कहा कि आचार्य चाणक्य ने लोक व्यवहार के जो मानक निर्धारित किए वो आज भी पूर्णतः प्रासंगिक हैं जैसे सप्तांग सिद्धान्त के अंतर्गत स्वामी,अमात्य,जनपद,पुर ,कोष,दण्ड तथा मित्र की विशद व्याख्या की। व्यक्ति के कर्तव्य,राजा के कर्तव्य,सेना का कर्तव्य जो उन्होंने निर्धारित किया, आज भी उनकी उपयोगिता सम्पूर्ण संसार निर्धारित करता है। चार उपाय, साम, दाम, दण्ड ,भेद आज भी प्रत्येक व्यक्ति कहीं न कहीं व्यक्त कर ही देता है।

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चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाकर अखण्ड भारत का स्वप्न साकार करने वाले तक्षशिला के आचार्य चाणक्य आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितना उस कालखण्ड में थे।