सिकंदरपुर(बलिया)। सरकार एक तरफ प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिये करोड़ों रूपये पानी की तरह से बहा रही है. वहीं दूसरी तरफ विभागीय अधिकारियों व शिक्षकों की लापरवाही से अधिकांश जगहों पर सरकार की मंशा पर पानी फिरता नजर आ रहा है. हालात ऐसे हैं कि परिषदीय विद्यालयों में छात्रों की संख्या अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पा रही है.
गौरतलब है कि शिक्षा उन्नयन की दिशा में सरकार द्वारा शिक्षकों को भारी भरकम धनराशि तनख्वाह के रूप में अदा करती है. साथ ही परिषदीय स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिये निःशुल्क पुस्तक, एमडीएम, फल, दूध के इंतजाम के अलावा प्रतियोगिता व स्कूल चलों रैली निकाले जाने की व्यवस्था की गयी है. किन्तु सरकार के लाख प्रयास के बाद भी ग्रामीण अंचलों के लगभग 80 प्रतिशत विद्यालयों में बच्चों की संख्या 10-20 से पचास या कई जगह नगण्य देखने को मिल रहे है.
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सवाल उठ रहे हैं कि इतने तामझाम और प्रयास के बाद भी ऐसे प्रतिकूल परिणाम सामने क्यों आ रहे है? इस सवाल का जवाब विभाग के उच्चाधिकारी अपनी साख बचाने के लिये शायद न दे सके. किन्तु सच्चाई यहीं है कि शिक्षक, प्रधानाध्यापक शिक्षा कम राजनीति में ज्यादा रूची रखते हैं, तथा ड्रेस, जूता, स्वेटर, एमडीएम, दूध, फल, पुस्तक या तमाम वे सामान जो बच्चों को दिये जाने हैं, उसमें भी काफी लम्बा चौड़ा खेल खेला जाता है. जिसके कारण बच्चों की संख्या बढ़ने के बजाय दिन पर दिन घटती ही जा रही है. इस सम्बंध में क्षेत्र के प्रबुद्ध वर्ग ने शासन-प्रशासन से जिला स्तरीय टीम गठित कर औचक निरीक्षण कराकर कार्रवाई सुनिश्चित कराने की मांग की है.