यत्र तत्र सर्वत्र ईश विद्यमान हैं, महसूस तो करें: श्रीकान्त शर्मा

बलिया। प्रभु की भक्ति समर्पित भाव लिए यदि करोगे तो वे स्वंय विदुर के घर की तरह तुम्हारे घर आकर दरवाजे पर दस्तक देंगे. प्रभु से मांगना हो तो फिर सांसारिक चीजे क्या मांगना. उनसे इति रति-मति एवं गति की मांग कर सर्वस्व प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करो. भीष्म पितामह की तरह भक्ति कर उन्ही की तरह वरदान मांगो. उक्त बातें कथा व्यास परमपूज्य श्रीकांत शर्मा ने श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिन शहर के टाउनहाल में श्रद्धालुओं व धर्मानुयागियों को संबोधित करते हुए कही.

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उन्होंने कहा कि भीष्म पितामह बाण शैय्या पर लेट कर भी श्री कृष्ण से उपरोक्त चारों वरदान मांगा, जिससे उनकी अंतिम गति वासुदेव कृष्ण के सामने हुयी. व्यास जी ने कहा कि प्रभु को तीन रास्तों से प्राप्त किया जा सकता है. पहला तेज जो माता-पिता की सेवा करने से मिलता है, उन्होंने कहा कि गृहस्त जीवन आश्रम में रहने वाले मनुष्य अगर भाव मे रहकर प्रभु के लिए रोते है, तो वह मनुष्य साधु बन जाता है, पौराणिक कथा के अनुसार सत्संग के प्रभाव से ही दासी के पुत्र से नारायण के पुत्र हो गये नारद. भगवान ने उन्हें देवदत्त वीणा भी प्रदान किया. उसी नारद जी के प्रेरणा से वेद व्यास जी ने 18 हजार श्लोक वाले श्रीमद भागवत की रचना कर दी. श्रीमद् भागवत संसार की जलन से शांति दिलाने वाला ग्रंथ है. संसार जल रहा है और इससे शांति परमात्मा ही दे सकता है. वह सर्वस्त व्याप्त है. परमात्मा पास भी हैं, और दूर भी है. वह संसार में हैं, और संसार उसमें है. ब्रह्म सब मे विद्यमान हैं, और राम तथा कृष्ण वर्तमान हैं, ये सब मे रहते हैं. लेकिन दिखाई नही पड़ते. परमात्मा स्वयं प्रकाश है. सब कुछ उन्ही से प्रकाशित होता है. जब कही से प्रकाश नही मिले तो अपनी आत्मा से प्रकाश लेना चाहिए.

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