मंदिर ही नहीं, मेला भी मशहूर है ब्रह्मपुर का

बक्सर से विकास राय

vikash_raiबाबा भोले भंडारी की नगरी ब्रह्मपुर की एक अलग  ही विशिष्टता है.. यहां पर हरेक जगह से लोग आते है और बाबा की पूजा अर्चना करते है. महाशिव रात्रि के समय का नज़ारा अद्भुत होता है. ये मंदिर बक्सर, आरा, बलिया, छपरा  और  सासाराम मे बहुत ज़्यादा प्रसिद्ध है. वैसे तो बिहार और उत्तर प्रदेश के कोने कोने से श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने आते हैं. लाखों की संख्या में लोग बक्सर गंगा स्नान कर गंगा जल हाथ में या कांवर में लेकर पैदल महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में ब्रह्मपुर पहूंचते हैं तथा बाबा का जलाभिषेक करते हैं.

ऐसी मान्यता हैं की इस मंदिर का  निर्माण स्वयं भगवान ब्रह्मा ने किया था. वैसे नाम से भी काफी हद तक यह स्पष्ट हो जाता है कि ब्रह्मपुर का मतलब ब्रह्मा की नगरी. ऐसा कहा जाता है की एक बार मुस्लिम शासक गजनवी इस मंदिर को तोड़ने के लिया आया. यहां  के लोगों ने उसे ऐसा करने से मना किया और चेतावनी दी की अगर ऐसा करोगे तो भगवान शिव की तीसरी आँख खुल सकती है और वह तुम्हारा नाश कर देंगे. क्योंकि ये मंदिर कोई व्यक्ति विशेष द्वारा निर्मित नहीं है, बल्कि इस मंदिर का शिवलिंग ज़मीन से खुद निकला है और ऐसा चमत्कार है. ये हमेशा बढ़ते रहता है. इस पर गजनवी ने कहा की मुझे ऐसे भगवांन पर विश्वास नहीं है. अगर वह सच में दुनिया में है और अगर तुम लोगों की बात में थोड़ी भी सत्यता है तो रात भर में मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम की तरफ हो जाए. जैसा की हर शिव मंदिर का द्वार पूरब की तरफ ही होता है. फिर मैं भी मान लूंगा और वादा करता हूं की फिर कभी दोबारा नहीं लौटेंगे.

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ऐसा कहा जाता है अगली सुबह जब गजनवी मंदिर तोड़ने आया तो देखा कि इस मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम दिशा में हो गया था. यह देख कर  गजनवी हतप्रभ रह गया था. अपनी सेना लेकर वह यहां से दूर चला गया. आज भी इस मंदिर का द्वार पश्चिम की तरफ ही है. प्रमाण है की इस मंदिर के  शिव लिंग का  आकार समय समय पर  बड़ा ही होते  जा रहा है. इस मंदिर को लोग बड़ा ही पवित्र मानते है और अलग जगह के लोग अपनी मनोकामना पूर्ण करने हेतु जरुर आते है. यहां पर लोग आस्था के साथ अपनी शादी भी करवाते हैं.

ब्रह्मपुर के लोगों  के द्वारा विश्व प्रशिद्ध मवेशियों का मेला लगता है, ऐसा कहा जाता है कि सोनपुर के बाद यह एशिया का दूसरा सबसे बड़ा मेला है. जहां पर उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान अपने खेती बारी के उद्देश्य  से मवेशियों की खरीद बिक्री का काम भी यहीं से करते हैं. यह मेला पूरे साल में एक बार लगता है, फाल्गुन के महीने में.