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पंडित अरविंद शास्त्री ने कहा कि भगवान के कार्य के लिए जो जीव अपने तन का त्याग करें वह परम बड़भागी होता है. जैसे कि प्रभु श्रीराम के कार्य के लिए जटायु ने अपने तन का त्याग कर दिया था. मानस मर्मज्ञ पंडित अरविंद द्विवेदी ने कहा कि “हनुमान सब नहीं बड़भागी, नहीं कोऊ राम चरण अनुरागी” हनुमान जी महाराज से बड़भागी कोई नहीं है.
तपस्वी को एक दिन सपने में भोलेनाथ ने( सीता अवनी) छितौनी में होने का संकेत दिया. और कहा कि इतनी दूर मत जाओ मैं यही हुं , फिर आस पास के ग्रामीणों के सहयोग से उक्त स्थान पर खुदाई की गई . खुदाई के उपरांत छितौनी में ही इस शिवलिंग का विग्रह प्राप्त हुआ. इस शिव लिंग को ऊपर लाने का बहुत प्रयास किया गया. जब जब शिवलिग को ऊपर लाने का प्रयास होता तब तब शिवलिंग उतना ही नीचे चला जाता. तभी भगवान भोलेनाथ महात्मा के रूप में प्रकट होकर गाँव के लोगों को दर्शन देकर इसी तरह शिवलिंग की पूजा अर्चना करने की सलाह दी और इस शिवलिंग को छितेश्वर नाथ महादेव का नाम देकर अंतर्ध्यान हो गए.
कथा के आखिरी दिन रविवार के देर शाम कथा प्रसंग में भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक का प्रसंग सुन भक्त खुशी से झूम उठे. भक्तों के जय श्रीराम के गगनभेदी नारों से पूरा वातावरण गुंजायमान हो गया. स्वामी राधारंग जी महाराज ने कथा का विस्तार देते हुए कहा कि भगवान श्रीराम धर्मपालन के आदर्श प्रतिमान है. वनवास के अवसर धैर्य का जैसा अपूर्व प्रदर्शन श्रीराम ने किया वैसा अत्यंत दुर्लभ है. जिस परिस्थिति में स्वयं महाराज दशरथ अधीर हैं,राज परिवार अधीर हैं,मंत्री सुमंत अधीर हैं,अयोध्या की प्रजा अधीर हैं, उस स्थिति में भी श्रीराम “धीर”हैं.