
बलिया : देश के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार स्व. डॉ केदारनाथ सिंह की जयंती उनके पैतृक गांव चकिया (तहसील-बैरिया) में मनाई गई. इस मौके पर प्रो. यशवंत सिंह की अध्यक्षता में एक गोष्ठी आयोजित हुई. गोष्ठी में जगह-जगह से आए साहित्यकारों और कवियों ने डॉ. सिंह की रचनाएं सुनाकर उनको याद किया. उनके जीवन से जुड़े किस्से भी साझा किये.
‘साखी’ पत्रिका के सम्पादक सदानन्द शाही ने भोजपुरी में केदार जी की बातों को उनके ही शब्दों में साझा किया. बता दें कि इस पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. केदारनाथ ही थे. प्रो. शाही ने डॉ. सिंह को एक समग्रता का कवि बताया. जीवन को मनुष्यों तक सीमित न कर प्रकृति संरक्षण की भी सोच रखते थे. उनकी मिट्टी पर आने पर खुद को सौभाग्यशाली महसूस करने की बात कही.

भागड़ दादा उठ, हो गइल बिहान
गोष्ठी में बीएचयू के प्रो. सदानन्द शाही ने भोजपुरी में डॉ. सिंह की कुछ रचनाएं सुनाकर उनकी यादें ताजा कर दी. उन्होंने कहा कि केदार जी ‘बिना नाम की नदी’, कुआं, तालाब, खेत-खलिहान आदि पर कविताएं लिखते रहे. वहीं, आखिरी समय में भोजपुरी में ‘भागड़ नाला जागरण मंच’ नामक कविता में केदार जी ने लिखा, ‘भागड़ दादा उठ, हो गइल बिहान. पशु-पक्षी, गाय, बैल, किसान भागड़ में तोहार पानी पीके प्यास बुझावे पहुंचल बा लो’.
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प्रो. शाही ने कहा कि उनकी रचनाओं में यह चिंतन था कि वह कौन सी वजह है कि कुआं, नदी, तालाब से पानी निकलकर बोतल में आ गया. आदमी, चिड़िया, जानवर, चुरूँगा, नदी-नाला सबको जोड़कर दुनिया बनी, लेकिन देश से पानी ही चला गया. ऐसी ही कई प्रकृति से जुड़ी समस्याओं पर आधारित और लोगों को जगाने के लिए उनकी रचनाएं होती थी. प्रो.शाही ने साखी पत्रिका के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाये.

सहजता, सरलता में थी उनकी विद्वता: डीएम
स्व. डॉ. केदारनाथ सिंह जी के पैतृक गांव में हुई गोष्ठी में डीएम श्रीहरि प्रताप शाही भी शामिल हुए. उन्होंने कहा कि उनका सौभाग्य रहा कि डॉ. सिंह का आशीर्वाद हमेशा मिलता रहा. जहां भी उनकी पोस्टिंग रही, कभी न कभी मुलाकात होती रही. सजहता, सरलता में उनकी विद्वता भी झलकती थी.
खास बात है कि उनकी हर रचना में गांव, गांव के लोग, गंवई माहौल जैसी मूल बातें झलकती थी. उनकी जयंती पर उनके गांव में मौजूदगी को अपना सौभाग्य समझता हूं. उन्होंने यह आयोजन हर वर्ष करने की अपील भी की.

लोहे के टंगुनिया से बगिया में बाबा, कटिहा ना अमवा के सोर
केदारनाथ सिंह की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में आए साहित्यकारों ने उनकी रचनाओं के जरिये प्रकृति को बचाने का संदेश दिया. बीएचयू में अध्ययनरत सुशांत ने प्रकृति का महत्वपूर्ण अंग पेड़ों की सुरक्षा पर आधारित केदारनाथ जी की ‘लोहे के टंगुनिया से बगिया में बाबा, कटिहा ना अमवा के सोर’ कविता सुनाकर सबको झकझोर दिया. सभी श्रोताओं ने तालियां बजाकर सराहा.
पेड़ों के संरक्षण के अलावा उन्होंने आज की ज्वलन्त पारिवारिक समस्याओं पर आधारित अपनी भी कुछ कविताएं पढ़कर मौजूद समस्त साहित्यकारों का आशीर्वाद लिया. सुशांत की कविता ‘देहिया ने दरार परे त परे, नेहिया में दरार ना फाटई रे’ को भी सबने पसन्द किया.

वक्ताओं में कवि उदय प्रकाश, दुबहड डिग्री कालेज के प्राचार्य दिग्विजय सिंह, बीएचयू के प्रो.अवधेश, श्वेतांक, डॉ राजेश मल्ल आदि ने केदार जी के जीवन से जुड़े अपने विचार रखे. अंत में स्व. डॉ.सिंह के पुत्र सुनील सिंह (आईएएस) ने आगंतुकों का आभार जताया.
इस अवसर पर चितरंजन सिंह, रामेश्वर सिंह, मुक्तेश्वर सिंह, मोहन जी, प्रधान प्रतिनिधि अरुण सिंह, सन्तोष सिंह, शैलेश सिंह, बीडीओ बैरिया अशोक कुमार समेत अन्य लोग मौजूद थे. संचालन प्रोफेसर कामेश्वर सिंह ने किया.