हल्दी (बलिया) से लौटकर संतोष शर्मा
एक तरफ शासन और प्रशासन बाढ़ से एनएच 31 को बचाने की कोशिश में जुटा है, वहीं पर गंगा नदी भी दब दबा दिखा रही है. गंगा नदी का पानी दक्षिण तरफ से उत्तर तरफ की ओर आने को बेताब दिख रहा है. कई जगह बलिया से बैरिया के बीच में गंगा का पानी सड़क में सुराग बना चुका है. वही से पानी अंदर ही अंदर आने का प्रयास कर रहा है.
गंगा और उनके छोरों के बीच चल रहा है आइस पाइस
आम जनता से लेकर सरकारी अमला तक मिलकर उसे रोक रहा है. देखना यह है कि यह लुका छिपी का खेल कब तक चलता रहेगा. काम करने वालों को पसीना बहाना पड़ रहा है तो स्थानीय लोगों को मानसिक, आर्थिक तथा शारीरिक परेशानियों से जूझना पड़ रहा है. वही पर बंधे के उत्तर तरफ के लोग भी पानी के रिसाव से परेशान हैं. सबकी आंखों की नींद उड़ चुकी है.
नेता लोग आते हैं, घुमते हैं, फोटो खिंचवाते हैं, चले जाते हैं
समाजसेवी नेता आते हैं, घुमते हैं, फ़ोटो खिचवाते हैं तथा चले जाते हैं. प्रशासन तो अपना दायित्व बखूबी निभा रहा है, मगर कुछ ठेकेदार, कोटेदार तो सिर्फ दिखाने का प्रयास कर रहे हैं. क्षेत्र के लोग लगभग सात दिनों से परेशान हैं, मगर दिखावा दो दिनों से है. कहीं खाने का पैकेट बांटा जा रहा है तो कही फोटो खिंचवाया जा रहा है. कहीं खाना बनवाया जा रहा है तो कही लोग बिन खाये सो जा रहे हैं.
पानी में रहकर भी पानी के लिए मोहताज
सबसे ज्यादा संकट तो पीने के पानी का है. खाना तो कहीं कहीं चला जा रहा है, मगर पीने के पानी का कहीं पता नहीं है. लोगों के नल पानी में डूब चुक हैं. पीने का पानी भी प्रदूषित हो चुका है. लोगों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत का अनुमान तो इसी से लगाया जा सकता है कि पीने के पानी के लिए लोग सड़क पर डब्बा लेकर गाड़ियों का इन्तजार कर रहे हैं, ताकि कोई आए एवं वे खरीदें. लेकिन इस पर ध्यान किसी का नहीं है. बाढ़ रहत कैम्प भी बनाये गए हैं. नीरुपुर, सीताकुंड, हल्दी, गायघाट, मझौआ, रामगढ़ में सड़क पर ही दवा और डॉक्टर की व्यवस्था है. कुछ लोग तो सड़क पर मवेशियों के साथ हैं, लेकिन कुछ गांवों में महिलाएं और बच्चे घर के छत पर टेंट लगाकर हैं. मगर देखना यह है कि इस व्यवस्था से लाभान्वित कितने लोग होते हैं.
संकट की इस घड़ी में कई गांवों के प्रधान ‘लापता’ है
अगर खाने के पैकेट के बारे में बात किया जाय तो नेमछपरा, बबुरानी, उदवन छपरा, हासनगर, राजपुर, बजरहा तथा नई बस्ती में मृत्युंजय तिवारी ‘बबलू’ ने नाव द्वारा बुधवार को व्यवस्था करवाया है. वहीं पर पोखरा, मुराड़ीह, हृदय चक, बाबुबेल तथा चौबेबेल में ग्राम प्रधान संतोष सिंह ‘बच्चा’ ने कमान संभाला है. बेलहरी से मझौवां तक का कमान समाजसेवी शंकर सिंह ने संभाला है. जबकि हरेक कोटेदारों तथा प्रधानों को भी सूचित किया गया है, मगर इनका काम कहीं भी लगभग सुनने को नहीं मिल रहा है.
मवेशी से लेकर बच्चों तक, पूरी दुनिया हाईवे पर है
ग्राम सभा मुड़ाडीह का वार्ड नं 14 का कुछ भाग भी पानी में है, मगर प्रधान वहां हाल चाल पूछने तक नहीं गए. वहां के ग्रामीण डब्लू वर्मा, रवि वर्मा, राजीव वर्मा, योगेन्द्र वर्मा, हरिहर गोंड़, बलिराम वर्मा, रामजी वर्मा, ईश्वर दयाल वर्मा इससे काफी दुखी दिखे. पानी हरेक घरों में पहुंचने से पशु से लेकर बच्चे तक सड़क पर हैं. रहने का कोई ठिकाना न होने के कारण अपनी व्यवस्था अपने ही तिरपाल द्वारा किये हैं. एक तरफ पानी दूसरी तरफ चलती हुई सड़क, खतरा दोनों तरफ है. देखना यह है कि क्या इस पर किसी का ध्यान जाता है.
भरौली गांव में राहत सामग्री के नाम पर कुछ भी नहीं आ रहा है. ग्राम प्रधान से भी कोई मदद नहीं मिल रही है. न यहां कोई नाव आई, न कोई टीम आई – रश्मि दूबे (बलिया लाइव न्यूज पोर्टल पर)