हिंदू लोग होली त्योहार को प्रेम ,रंग, बसंत, सद्भाव, भाईचारा एवं खुशी के त्योहार के रूप में मनाते हैं. यह त्योहार हमारे बीच एकता के सूत्र पिरोता है. होली के दिन लोग सभी बैर को भुलाकर अबीर -गुलाल एक दूसरे को लगाते हैं. गले मिलते हैं तथा छोटे बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं. यह त्योहार आने पर एक साल से मन में बैठी मैल बाहर निकल जाती है.
हिंदू समाज में अधिकांश लोगों को मालूम है कि इस त्योहार को हिंदू समाज बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत के रूप में मनाता है.
“होलिका में हम अपना अहंकार जलाते हैं”
पुराणों के अनुसार आदिकाल में हिरण्यकश्यप नामक एक शैतान राजा राज्य करता था जिसे ब्रह्मा द्वारा आशीर्वाद प्राप्त था कि उसे कोई आदमी, जानवर या हथियार नहीं मार सकता. इस वरदान के बाद वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने अपने राज्य में भगवान की पूजा करना मना कर दिया एवं स्वयं की पूजा कराने लगा लेकिन किसी घटना ने उसके ही संतान की आंखें खोल दी और उसके पुत्र प्रह्लाद ने उसके आज्ञा का उल्लंघन करना शुरू कर दिया, जिसके कारण हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए अनेक कुचक्र रचा. उसे हाथी से कुचलवाया ,पहाड़ से फेंकवाया ,जल में डुबोकर मारने की कोशिश की लेकिन फिर भी उसका बाल बांका नहीं कर सका. भगवान विष्णु ने प्रहलाद की हर संकट से रक्षा की. फिर हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ आग में बैठा कर उसे जलाने की कोशिश की. होलिका को वरदान मिला था कि आग उसे नहीं जला सकती लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को लेकर चिता पर बैठी तो आग लगाने पर होलिका जल गई एवं प्रहलाद बच गया. वह इसलिए जल गई क्योंकि उसे अकेले आग में बैठने की अनुमति थी न कि किसी और को साथ में लेकर बैठने की. फिर भगवान विष्णु को अपने भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए एवं हिरण्यकश्यप राक्षस का वध करने के लिए नरसिंह का रूप लेना पड़ा क्योंकि उस शैतान को मारना मानव ,जानवर और हथियार के बस का नहीं था इसलिए भगवान विष्णु ने मानव का शरीर धारण किया और मुख शेर का. उस राक्षस को मारने के लिए किसी हथियार का प्रयोग नहीं किया और अपने नाखून से उसका वध कर डाला. उसी होलिका को आग में जलने के कारण हम होलिका में अपना अहंकार जलाते हैं तथा इस खुशी में अगले दिन अहंकारविहिन हो करके हम एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाते हैं तथा आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
(मनियर संवादाता वीरेंद्र सिंह की रिपोर्ट)