बहुभाषी देशों में अनुवाद के बिना राष्ट्रीयता की परिकल्पना नहीं की जा सकती – डाॅ अजय कुमार चौबे

बलिया. अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस के अवसर पर जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय द्वारा  “भारत में अनुवाद अध्ययन: सिद्धांत और व्यवहार” विषय पर एक ऑनलाइन व्याख्यान का आयोजन किया गया. गोष्ठी को संबोधित करते हुए डाॅ अजय कुमार चौबे, असिस्टेंट प्रोफेसर, अंग्रेजी, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, उत्तराखंड ने कहा कि अनुवाद के बिना भारत जैसे बहुभाषी समाज के विभिन्न भाषायी क्षेत्रों में विचारों की सहभागिता संभव नहीं है. बहुभाषी देशों में अनुवाद के बिना राष्ट्रीयता की परिकल्पना नहीं की जा सकती. अनुवाद के द्वारा ही एक भाषा की रचना दूसरी भाषा के लोगों तक पहुंचती और सम्मान पाती है. आज के इस वैश्विक समाज में अनुवाद का महत्त्व बहुत बढ़ गया है. इसमें रोजगार की कई संभावनाएं हैं. छात्र अनुवादक, दुभाषिया, लेखक, पत्रकार, फ्री लांसर, आर जे, वी जे, आदि क्षेत्रों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं.

 

अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कुलपति प्रो कल्पलता पांडेय ने कहा कि अनुवाद कला, शिल्प एवं विज्ञान है. अनुवाद एक प्रकार से पुनर्रचना है. अनुवाद के द्वारा ही भारतीय आर्ष ग्रंथों का विश्व में प्रसार हुआ है. अनुवाद के द्वारा ही भारत में सामाजिक समरसता का निर्माण हुआ है. इसीलिए नयी शिक्षा नीति में अनुवाद को व्यापक महत्त्व दिया गया है. डाॅ अजय चौबे द्वारा प्रश्नोत्तर सत्र में विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान करने के साथ उनके भविष्य के लिए मार्गदर्शन भी प्रदान किया गया. ज्योति क्लेमेंट, सत्यम सिंह, प्रीति सिंह आदि विद्यार्थियों ने प्रश्न किये.

गोष्ठी का संचालन डाॅ यादवेंद्र कुमार सिंह, स्वागत डाॅ जैनेंद्र कुमार पांडेय तथा धन्यवाद ज्ञापन डाॅ गणेश कुमार पाठक ने किया. गोष्ठी में डाॅ प्रमोद शंकर पांडेय, डाॅ रजनीकांत गुप्त, डाॅ जय प्रकाश सिंह आदि प्राध्यापक तथा एम ए अंग्रेजी के विद्यार्थी उपस्थित रहे.

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