भृगु क्षेत्र में गंगा स्नान के बाद दर्शन पूजन हजारों ने किया

भृगु क्षेत्र में गंगा स्नान के बाद दर्शन पूजन हजारों ने किया
कार्तिक पूर्णिमा को पूर्वांचल के लाखों लोग करेंगे भृगु क्षेत्र में गंगा स्नान

बलिया. ब्रह्मा के पुत्र, ब्रह्मा, विष्णु और शिव की परीक्षा लेने वाले ब्रह्मर्षि भृगु बलिया में सतत निवास करते हैं. महर्षि भृगु की तपोभूमि पर गंगा को प्रणाम.
असुरेन्द्र राजा बलि ने जहाँ यज्ञ किया, जिसमें दान लेने के लिये श्रीहरि विष्णु जी को वामन रुप धारण करना पड़ा था.

उ0 प्र0 के बलिया जिले में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले ददरी मेले के संबंध इतिहासकार डाॅ.शिवकुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि पाँच हजार ईसा पूर्व प्रचेता – ब्रह्मा जी के छोटे पुत्र महर्षि भृगु ने अपने प्रिय शिष्य दर्दर मुनि द्वारा गंगा नदी की विलुप्त हो रही धारा को बचाने के लिए सरयू नदी की जलधारा को अयोध्या से भृगुक्षेत्र मे लाकर दोनों नदियों का संगम कराने और अपने ग्रन्थ भृगु संहिता के लोकार्पण पर किया था.

डाॅ. कौशिकेय ने बताया कि गंगा – तमसा की जलधाराओं की टकराहट से निकल रही दर्र -… दर्र , घर्र – घर्र की ध्वनि पर महर्षि ने अपने शिष्य का नाम दर्दर और सरयू नदी का नाम घार्घरा रख दिया. महर्षि भृगु के इस आयोजन मे 88 हजार लोगों ने भाग लिया था.

यह परम्परा इतने दिनो बाद आज भी अनवरत चल रही है. यह भोजपुरी क्षेत्र के गौरवपूर्ण अतीत की अनुपम परम्परा है , जिसमें अध्यात्म , कला , लोकजीवन , साहित्य विकास से लेकर जीवन हर विधा समाहित है.

डाॅ.कौशिकेय ने बताया कि पूरे भारत मे महर्षि भृगु के तीन स्थान है. पहला हिमालय का मंदराचल पर्वत , दूसरा विमुक्त क्षेत्र बलिया जिसे भृगु – दर्दर क्षेत्र कहा जाता है. तीसरा स्थान गुजरात प्रान्त का भड़ौच (भरुच) जिसे भृगु कच्छ कहा जाता है . इसे भृगु पुत्र च्यवन ने अपने श्वसुर राजा शर्याति की मृत्यु के बाद आबाद किया था.

महर्षि भृगु ने अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण भाग को बलिया के भू- भाग को विकसित करने मे लगाया. पहले यहां जंगली जातियां रहती थी जिसमें कुछ नरभक्षी भी थी . महर्षि ने इन्हे शिक्षित किया, जीवन जीने की कला सिखाया.

ऐसे कार्तिक पूर्णिमा पर अमृतसर सरोवर में गुरुनानकदेव जयन्ती के नाते , वाराणसी में देव दीपावली के नाम से गंगा – वरुणा संगम पर, ऐसे ही हरिद्वार से लेकर गंगासागर तक श्रद्धालुजन स्नान करते है. इसके अलावे भी विभिन्न धार्मिक सरोवरों, नदियों में स्नान पूजन की परम्परा है.

पद्मपुराण के अनुसार सभी पवित्र नदी – सरोवर सारे देवता और तीर्थ कार्तिक पूर्णिमा के दिन जब भगवान सूर्य तुला राशि में होते है , तब विमुक्त क्षेत्र – भृगु दर्दर क्षेत्र बलिया में पाप मोचन शक्ति प्राप्त करने आ जाते है .
ये सभी तीर्थ अपने वर्षो से धोये पापों को इस विमुक्त क्षेत्र में धोकर नये पापो का मोचन करने की शक्ति यहां से लेकर अपने -अपने क्षेत्रो में लौटते है.

बलिया जिले के कोटवा नारायणपुर से लेकर बिहार छपरा के दिघवारा तक जो भी प्राणी गंगा नदी तट पर कार्तिक महीने में कल्पवास करता है उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है. बीमार मनुष्य निश्चित रुप से निरोग हो जाएगा.
इसके लिए उसे अपने कल्पवास के स्थान के चारों ओर तुलसी का बिरवा लगाना चाहिए.बासी मुहँ तुलसी के पत्ते खाना चाहिए .

जिसे डाक्टरो ने मौत की तारीख बता दी हो उसके लिए यह रामबाण औषधि है. मुझे यह बात एक सिद्ध महात्मा ने हिमालय में बताया था.
वैसे भी यह लोकमान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा पर बलिया संगम मे स्नान करने से साल भर तक बीमारियां नहीं होती है.
एक और मजेदार जानकारी जिस युवती को ससुराल जाकर उसी साल अपनी गोद भरनी हो, उसके लिए भी यहाँ गंगा – तमसा संगम पर नहाना फ़ायदे का रहेगा.

इसीलिए आज भी मऊ, देवरिया , सीवान , छपरा , सासाराम तक से परिवार वाले ससुराल जाने वाली लड़कियो को ददरी नहाने ले आते है.
आयुर्वेद और खगोल विज्ञान के अनुसार –
बलिया में ग़ंगा – तमसा का जो भू- क्षेत्र है , वह पृथ्वी का ऐसा भूभाग है जहाँ पूरे कार्तिक माह में चन्द्रमा की किरणे यहाँ के नदी ,सरोवरो के जल को आरोग्यदायिनी शक्ति से भर देती है.

एक और महत्वपूर्ण बात है कि गंगा का जल देश के अन्य शहरों में चाहे जितना प्रदूषित हो बलिया मे आकर वह आज भी स्वच्छ हो जाता है. इसका कारण यहाँ की सफ़ेद रेत (बालू ) है .सूर्य की किरणे भी इस भू-भाग पर लम्बवत गिरती है ,जिससे प्राण ऊर्जा यहाँ के नदी सरोवरों में बढ जाती है.

शरदपूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक इस भू – भाग को ब्रह्माण्ड से विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है. इसीलिए इसका इतना महत्व है.
पद्मपुराण के अनुसार जो पुण्य काशी मे तपस्या करते हुए मृत्यु को प्राप्त करने, रणभूमि मे वीरगति प्राप्त करने से प्राप्त होता है उतना पुण्य कलियुग मे दर्दर क्षेत्र के गंगा – तमसा सगम मे स्नान करने मात्र से मिलता है.

जितना पुण्य पुष्कर तीर्थ, नैमिषारण्य तीर्थ सेवन करने, साठ हजार वर्षो तक काशी में तपस्या करने से प्राप्त होता है उतना पुण्य कलियुग में दर्दर क्षेत्र के गंगा – तमसा… सगम में स्नान करने मात्र से मिलता है.

सभी प्रकार के यज्ञों और दान से जो पुण्य प्राप्त होता है , वह सम्पूर्ण पुण्य कलियुग में दर्दर क्षेत्र के गंगा – तमसा संगम के स्पर्श – दर्शन करने मात्र से मिलता है.

जो मनुष्य दर्दर क्षेत्र में जाने के लिए अपने घर से प्रस्थान करता है , उसी समय से उसके सारे पाप रोने लगते है और भूत – प्रेत ग्रस्त लोगों के प्रेतादि व्याकुल हो जाते है .

अब बलिया की ब्रेकिंग न्यूज और बाकी सभी अपडेट के लिए बलिया लाइव का Whatsapp चैनल FOLLOW/JOIN करें – नीचे दिये गये लिंक को आप टैप/क्लिक कर सकते हैं.
https://whatsapp.com/channel/0029VaADFuSGZNCt0RJ9VN2v

आप QR कोड स्कैन करके भी बलिया लाइव का Whatsapp चैनल FOLLOW/JOIN कर सकते हैं.

ballia live whatsapp channel

Breaking News और बलिया की तमाम खबरों के लिए आप सीधे हमारी वेबसाइट विजिट कर सकते हैं.

Website: https://ballialive.in/
Facebook: https://www.facebook.com/BalliaLIVE
X (Twitter): https://twitter.com/ballialive_
Instagram: https://www.instagram.com/ballialive/

This post is sponsored by ‘Mem-Saab & Zindagi LIVE’