डम्बर बाबा के परती स्थान पर झूठ….. ना बाबा ना….. भूसा चढ़ता है प्रसाद में

​गो रक्षा में अपने प्राणों की आहुति देने वाले बाबा के इकबाल से गो सेवा सुरक्षा आज भी परम्परा में जीवन्त 

बिल्थरारोड (बलिया) से अभयेश मिश्र

नगर के दक्षिण दिशा में पशुहारी मार्ग पर एक किलोमीटर दूरी पर बाबा दिगम्बर नाथ की लगभग सौ एकड़ जमीन है. बाबा दिगम्बर नाथ की महिमा पूर्वान्चल के ख्याति प्राप्त शक्ति पीठों में से एक है. दिगम्बर बाबा के स्थान को डम्बर बाबा के परती के नाम से भी जाना जाता है. जहां पर हर साल सावन के चौथे बृहस्पतिवार को बाबा की परती मे मेला लगता है. इस जगह पर लोग कभी झूठी कसम नहीं खाते है. बाबा की परती पर लोग मन्नत पूरी होने पर भूसा व प्रसाद चढाते है. साथ ही अखण्ड हरिकीर्तन कराते है. बाबा दिगम्बर नाथ ने गाय की जान बचाने के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी थी. बाबा की परती पर न तो कोई निर्माण कार्य करता है और न ही जोतता है.

गाँवों के बुजुर्ग  बताते हैं कि क्षेत्र के मिश्रौली गाॅव निवासी बाबा दिगम्बर नाथ का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उस समय पूरे देश पर मुगल शासन था और क्षेत्र का बासपार बहोरवा गाॅव एक रियासत थी. वहां एक मुस्लिम शासक हुआ करता था. शासक के यहां बाबा दिगम्बर नाथ नौकरी करते थे. उस समय शासक के बेटे की बारात आजमगढ़ जिले में गई थी. बाबा दिगम्बर भी उस बारात में गये थे. शासक ने बाबा दिगम्बर से कहा – दिगम्बर जाओ घोड़े को खिला दो और उनके पैरो की मालिश कर दो. शासक की बात सुनकर बाबा दिगम्बर ने कहा कि यह हमारा काम नही है, हमारा काम दूसरा है.

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बाबा दिगम्बर की बात शासक को नागवार लगी. उसने कहा कि मैं तुझें बताऊंगा. सुबह होने पर शासक ने एक गाय को मंगवाया और एक अहाते में बधवा दिया. बाबा दिगम्बर को बुलाकर कहा कि ये तलवार लो और गाय का वध कर दो. बाबा दिगम्बर मारने के भय से हाथ में तलवार लेकर गाय का वध करने के लिए चले गये. शासक ने बाबा दिगम्बर की पहरेदारी मे दो लोगों को लगा दिया. बाबा दिगम्बर ने पहरेदारी मे लगे दोनों लोगों को तलवार से काट दिया और गाय की रस्सी भी काट दी. नतीजतन गाय वहां से भाग निकली और स्वयं भी वहां से भाग निकले.

जब यह बात मुस्लिम शासक को पता चली तो बाबा दिगम्बर को मारने के लिए अपने लोगों को दौड़ा दिया. बाबा दिगम्बर भागते भागते टोंस नदी पार कर रहे थे कि शासक के लोगों ने भाला चला दिया. भाला लगने के बाद भी बाबा दिगम्बर लड़खड़ाते हुए कुछ दूर भागने के बाद गिर पड़े. वहां पर यादव जाति के चरवाहे गाय चरा रहे थे. बाबा को गिरा देख दौड़ पडे़. बाबा दिगम्बर ने पूरे बृतान्त कह सुनाया. चरवाहे चारपाई मंगाकर बाबा को लादकर उनके गांव की ओर चल दिये. बाबा को बीच रास्ते में जहां जहां रखा, वहां आज भी परती है.

मऊ जिले के इन्दारा के पास भी बाबा की परती है तथा बलिया जिले के चरौवां गाॅव के पास लगभग 50 बीघा जमीन है. अन्त में मिश्रौली गांव के पास लाए ओर बाबा के परिवार के लोग भी वहां आ गए. बाबा दिगम्बर ने परिजनों समेत अन्य लोगों से कहा कि ये सारी जमीन पशुओं के चरने के लिए छोड़ दो. इतना कहते ही बाबा दिगम्बर के प्राण पखेरु उड़ गये. आज बाबा दिगम्बर की परती को डम्बर बाबा की परती के नाम से जाना जाता है. बाबा की परती मे आकर जो लोग मन्नत माॅगते है. बाबा उनकी मुरादें अवश्य पूरी करते हैं.

हर वर्ष सावन के चौथे बृहस्पतिवार को डम्बर बाबा की परती में मेला लगता है. यहां लोग मन्नत पूरी होने के बाद पशुओं को भूसा खिलाते हैं और पूजन करते है. बाबा का कोई मन्दिर नहीं है. सैकड़ो एकड़ खाली परती पर ही पूजा होती है. बाबा की खाली परती को जो भी कब्जा करना चाहा उसे दुखों का सामना करना पड़ा. स्थानीय लोगों की माने तो सरकार का भी बाबा की परती पर निर्माण कार्य कराने के नाम पर रुह काप जाती है.

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