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बलिया न्यूज नेटवर्क
बलिया। चौबेछपरा में गुरुवार को अचानक तेज कटान शुरू हो गया और पलक झपकते राजनारायण मिश्र, राजकिशोर मिश्र और रामकेशरी देवी के रिहायशी मकान नदी मे विलीन हो गए. कटान को देखते हुए चौबेछपरा के अधिसंख्य मकानो पर दिल-दहलाने वाले हथौडे चलने लगे. एक साथ दर्जन भर मकानों पर चल रहे हथौड़ों की आवाज से आस-पास के लोगों का कलेजा कांप रहा है. वही कटान पीड़ितों के प्रति जनप्रतिनिधियों के साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता अभी तक बनी हुई है. इससे कटान पीड़ितों में भय व आक्रोश है. वैसे बाढ़ नियंत्रण कक्ष से मिली जानकारी के मुताबिक गंगा नदी का जलस्तर गायघाट पर 56.55 मीटर है, जो खतरा बिन्दु से नीचे है. घाघरा नदी का जलस्तर डीएसपी हेड पर 64.330 मीटर है, जो बढ़ाव पर है. चांदपुर पर जलस्तर 59.10 मीटर एवं मांझी में जलस्तर 55.12 मीटर है, जो बढ़ाव पर है. टोंस नदी का जलस्तर पिपरा घाट पर 57.10 मीटर है, जो बढ़ाव पर है, किन्तु खतरा बिन्दु से नीचे है.
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ढाही तेज होने से लोग सकते में हैं
जलस्तर के बढ़ाव घटाव के क्रम के बीच अब गंगा व घाघरा ने कहर बरपाना तेज कर दिया है. गंगा के चलते ढाही तेज होने से लोग भयाक्रांत व सकते में हैं. घाघरा का जलस्तर बेशक स्थिर है, पर तबाही कम नहीं हुई है. जनपद के कई गांवों में अब सिर्फ नाव ही आवागमन का एकमात्र माध्यम बचा है. बाढ़ विभाग कटानरोधी कार्य तो प्रशासन राहत मुहैया कराने के प्रयास में जुटा है. गंगा ने बलिया के सदर तहसील के चौबे छपरा में गुरुवार को जमकर कहर बरपाया. बुधवार देर रात शुरू हुए कटान में रिहायशी मकान नदी में समाहित होने के बाद वहां अफरा -तफरी मच गई. गंगा की उफनाती लहरों मे नदी किनारे बंधी पांच मछुवारों की नावें भी नदी की धारा के साथ बह गयी. वही विभागीय व प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता का आलम यह है कि कोइ संबंधित अधिकारी इन क्षेत्रों का निरीक्षण करने की जहमत भी नहीं उठाया.
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बंजारों की तरह जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं पीड़ित
चौबेछपरा मे गंगा से शुरू हए कटान के बाद अफरा-तफरी मच गई है. कटान पीड़ित अपनी खून-पसीना बहा कर बनाये गये घरौंदो को अपने ही हाथों तोड़ने को मजबूर हैं. कटान से भयभीत लोग छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं के साथ गांव से पलायन कर रहे हैं. कुछ परिवार तो अपने रिश्तेदारियो में शरण लेने पर मजबूर हैं, तो कुछ पीड़ित परिवार नेशनल हाईवे के किनारे बंजारों की तरह जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं. इन पीडितों की सुधि लेने की फुर्सत न तो समाज के खेवनहारों के पास है और न ही प्रशासनिक अधिकारियों के पास.
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