पैतृक गांव नगवा में अमर शहीद मंगल पांडेय को दी गई श्रद्धांजलि

1857 में बलिया के मंगल पांडेय की गोली से हिल उठी थी ब्रितानिया हुकूमत

बलिया. विश्व के नक्शे में बलिया एक बिंदु के बराबर भी नहीं है परंतु किसी आंतरिकओज के कारण ही शायद यह समूचे संसार के इतिहास में सदैव एक अद्वितीय स्थान अपने लिए सुरक्षित रखता आया है. जिस साम्राज्य में सूर्य कभी डूबता नहीं था वह ब्रितानिया हुकूमत बलिया के अमर सपूत मंगल पांडे की एक गोली से हिल उठी थी. लंदन की जमीन भी कांप उठी थी. कोई सोच नहीं सकता था कि जिस देश में लोग चौकीदार की लाल पगड़ी देख घरों में घुस जाते थे वहां एक सैनिक विद्रोह करने का साहस कर सकता है. सन् 1757 से ही भारतवर्ष के राष्ट्रीय पराभव का सूत्रपात हुआ जब प्लासी और बक्सर की लड़ाई में अंग्रेजों की विजय हुई. पानीपत के तीसरे युद्ध के बाद मराठों की शक्ति कमजोर हुई, सिखों का पराभव और अवध का पतन उस पतन चक्र के आखिरी पड़ाव थे. इस राजनीतिक पराभव से देश गुलामी की जंजीर से बंध गया था. इस जंजीर को तोड़ने के लिए जबरदस्त आंदोलन हुआ.

इस आंदोलन का सूत्रपात 29 मार्च 1857 को 19वीं रेजीमेंट इनफैक्ट्री का सिपाही बलिया के नगवा निवासी मंगल पांडे ने अंग्रेज अफसरों को गोली मारकर की थी.
अमर शहीद के पैतृक गांव में बने शहीदी स्मारक में मंगलवार को मंगल क्रांति दिवस के मौके पर चुनाव आचार संहिता वह यूपी बोर्ड परीक्षा के कारण निषेधाज्ञा को जड़ से एक-एक करके लोग स्मारक पहुंचे और अपने अमर शहीद के सम्मान में पुष्प अर्पित किया और उन्हें नमन किया.

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इस मौके पर मंगल पांडे विचार मंच के अध्यक्ष केके पाठक, उमाशंकर पाठक, मनोज पाठक, संजय जायसवाल, चक्की हनुमान डेरा के सोनू यादव, दिनेश यादव ,बड़का राजपुर के भुआल यादव, जवही दियर के राजेश यादव, रितेश यादव, शंभू शाह सहित आसपास के गांव से आए लोगों ने श्रद्धा सुमन अर्पित किया.

(बलिया से केके पाठक की रिपोर्ट)