कृषि की नई पद्धतियों में जिस तरह से रासायनिक खादों, नये विकसित बीजों,कीटनाशकों, खरपतवार नाशकों और सिंचाई का अनियोजित एवं अनियंत्रित प्रयोग उत्पादन बढ़ाने हेतु किया गया उससे उत्पादन में तो वृद्धि हुई लेकिन खेतों की उर्वरा शक्ति घटती गयी. कृषि मित्र जीव- जंतु भी समाप्त होते गये और हानिकारक जीव-जंतुओं का प्रभाव बढ़ता गया. यही वजह है कि कृषि वैज्ञानिक अब जैविक खेती पर विशेष जोर देने लगे हैं.
5 से 7 मार्च तक हरिद्वार में जैविक खेती पर राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई है जिसमें भाग लेने हेतु बलिया से चार सदस्यीय दल रवाना हुआ है. इनमें जैविक कृषि करने वाले पिण्डारी ग्राम निवासी राजनारायण तिवारी, अमरनाथ मिश्र पीजी कॉलेज दूबेछपरा के पूर्व प्राचार्य गणेश कुमार पाठक , जैविक कृषि करने वाले सोनवानी ग्राम के रंगनाथ मिश्र और बसुधरपार निवासी सुधीर कुमार पाण्डेय शामिल हैं.
यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.
जैविक खेती में देसी और विकसित बीज दोनों का प्रयोग किया जा सकता है लेकिन उर्वरक के रूप में रासायनिक खादों का प्रयोग न करके देसी खादों का प्रयोग किया जाता है. इस खाद को किसान स्वयं भी तैयार कर सकते हैं. इन्हीं उद्दश्यों को लेकर यह कार्यशाला आयोजित की गयी है, जिसमें देश भर के चुने हुए कृषक सम्मिलित होंगें. विषय विशेषज्ञों द्वारा तीन दिन तक प्रशिक्षण देकर जैविक कृषि के तौर तरीकों को बताया जायेगा. इस कार्यशाला से जानकारी प्राप्त कर जब बलिया का यह चार सदस्यीय दल लौटेगा तो बलिया में तेजी से जैविक कृषि का प्रचार-प्रसार होगा, जो बलिया के कृषि विकास में लाभकारी होगा.