तो क्या काशी के रण में हार गया फौजी ?

वाराणसी से रामराज्य परिषद के उम्मीदवार का पर्चा हुआ खारिज, धरने पर बैठ गये साधु-संत

वाराणसी से सुरेश प्रताप 

बनारस का कचहरी परिसर ! 1 मई 2019 ! सुबह अपने साथियों के साथ #फौजी_तेज_बहादुर मोर्चे पर डट गया था. उसके साथी जोश में नारेबाजी करते हुए इधर-उधर चहलकदमी कर रहे थे. सुबह के 10 बजने वाले थे. कचहरी परिसर में वकीलों के आने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. कुछ मुअक्किल भी आए थे.

उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट से 71 लोगों ने नामांकन दाखिल किया  था. इन नांमांकनों की आख़िरी तारीख  मंगलवार 30 अप्रैल को थी जिसके दौरान कई उम्मीदवारों  का पर्चा खारिज हुआ  है.  जैसे-अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के उम्मीदवार और बीएचयू के गोल्ड मेडलिस्ट वेदांताचार्य श्री भगवान का इन लोगों का नामांकन खारिज कर दिया गया है. वहीं श्री भगवान का नामांकन खारिज होने पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद साथ-साथ और भी कई साधु-संत कलेक्ट्रेट पहुंचकर धरने पर बैठ गए .

सपा-बसपा के कार्यकर्ता भी धीरे-धीरे जुटने लगे थे. हरियाणा व उत्तर प्रदेश के कुछ अवकाश प्राप्त सैनिक भी अपने फौजी साथी का हौसला बढ़ाने आए थे. उनके हाथ में तिरंगा था. जिसे लहराते हुए वो कचहरी परिसर में मार्च और नारे लगा रहे थे. फ्लैग मार्च ! वहां ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी, बीएसएफ के जवान और अधिकारी चुपचाप खड़े होकर उन्हें निहार रहे थे. कोई हस्तक्षेप नहीं ! बस वो देखते रहे.

इसी बीच तेज बहादुर के कुछ समर्थक डीएम कार्यालय के पोर्टिको में धरने पर बैठ गए. हाथ में तिरंगा लिए हुए. कचहरी में अपने मुकदमे के सिलसिले में आए लोग भी वहां पोर्टिको में उत्सुकतावश पहुंच गए. 2-3 फौजी नारे लगा रहे थे -“तानाशाही नहीं चलेगी” ! वहां खड़े लोग भी समवेत स्वर में इस नारे को दोहरा रहे थे. नारेबाजी शुरू होने पर सुरक्षा ड्यूटी पर तैनात जवान भी सतर्क हो गए थे.

धूप तीखी होती जा रही थी. डीएम पोर्टिको में तेज बहादुर के कुछ अवकाश प्राप्त फौजी साथी भाषण देने लगे. जब कोई फौजी नेताओं की तरह भाषण देने लगे तो क्या होगा ? कल्पना करिए ! नेता जिन्हें भाषण देना चाहिए वो चुप थे. और फौजी अपने साथी के समर्थन में मुखर थे. पहुंचे तो वहां समाजवादी पार्टी के नेता भी थे. लेकिन उनका आपसी सांगठनिक अन्तरविरोध खुलकर सामने आ चुका था. जिस पर पैबंद लगाने की वो कोशिश कर रहे थे.

भाषण देने वाले फौजी कह रहे थे 1965, 1971 और करगिल में हम पाकिस्तान से लड़े और जंग जीते थे. अब लोकतंत्र की यह जंग भी जीतेगें और तानाशाही के मंसूबे को ध्वस्त करेंगे. शायद वो राजनीतिक लड़ाई की चाल व दांव-पेंच से परिचित नहीं थे. लेकिन अब धीरे-धीरे वो राजनीतिक चालें भी समझने लगे हैं. जब नेता अपने चाल और चरित्र में भ्रष्ट हो जाएंगे तो आखिर उनकी कमी को पूरा करने के लिए समाज का कोई तपका तो सामने आएगा ही.

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क्यों फौजी ने दी मोदी को चुनौती

सत्ता के शिखर पुरूष ! वह भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनके संसदीय क्षेत्र बनारस में आकर ललकारना कोई मामूली परिघटना नहीं है. इसके लिए मानसिक व सोच के स्तर पर दमखम चाहिए. जिस महाबली के सामने विपक्ष के राजनीतिक क्षत्रप आत्मसमर्पण कर दिए हों उसे किसी किसान का बेटा फौजी ही चुनौती दे सकता है और काशी के रण में दिया भी. तब शहर के लोग तमाशबीन बना रहे.

तेज बहादुर एक महीने से बनारस में आकर डेरा डाले है. वो अकेले आया था काशी के रण में ! और धीरे-धीरे कांरवा बनता गया. निर्दल प्रत्याशी के रूप में नामांकन किया था. लेकिन नामांकन के अंतिम दिन 29 मई को जब सपा ने उसे अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया, तब अचानक राजनीतिक समीकरण बदलते नज़र आने लगे.

नामांकन के अंतिम दिन पुन: जब वो सपा प्रत्याशी के रूप में कचहरी स्थित नामांकन स्थल पर पहुंचा, उस समय जिले के सपा नेता अपनी पूर्व घोषित प्रत्याशी शालिनी यादव का नामांकन जुलूस निकालने में व्यस्त थे. शालिनी दस दिन पहले कांग्रेस से सपा में आई थीं और सीधे लखनऊ से उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया गया था. लेकिन इसे लेकर सपा का आंतरिक अन्तरविरोध सतह पर आ गया. पार्टी को बिखरने से बचाने के लिए मजबूरी में सपा ने तेज बहादुर को प्रत्याशी घोषित कर दिया. उल्लेखनीय है कि सपा-बसपा गठबंधन में बनारस की सीट सपा को मिली है.

सपा का प्रत्याशी बनने से तेज बहादुर की स्थिति मजबूत हो गई और मीडिया में भी वो चर्चा में आ गया. उधर, कांग्रेस की प्रियंका गांधी के बनारस से चुनाव लड़ने की चर्चा थी. लेकिन नरेन्द्र मोदी ने अपने नामांकन से पूर्व 25 अप्रैल को जब बनारस में रोड शो निकाला उसी दिन अजय राय को प्रत्याशी घोषित कर इस चर्चा पर कांग्रेस ने विराम लगा दिया.

1 मई को कचहरी परिसर में तीखी धूप के बावजूद दिन भर मीडिया के लोग तेज बहादुर को घेरे रहे और सवाल पूछते रहे. यह वही मीडिया है जिसकी प्रधानमंत्री मोदी के सामने घिग्घी बंध जाती है. सवाल खत्म हो जाते हैं. और फौजी तेज बहादुर के सामने मुखर हो गई थी. उसकी मुखरता के भी मायने हैं. चर्चा है कि तेज बहादुर का नामांकन निरस्त कर दिया गया है. अब उसके प्रतिद्वन्द्वी और मीडिया कर्मी भी राहत की सांस लेंगे.

अब कुछ लोग उसे #भगोड़ा साबित कर बदनाम कर रहे हैं. लेकिन कोई यह नहीं बताना चाहता कि बीएसएफ के इस जवान ने भोजन का जो मुद्दा उठाया था, उसकी जांच के लिए मोदी सरकार के गृह मंत्रालय ने एक कमेटी बनाई थी. आखिर उस रिपोर्ट में क्या है ? मीडिया भी यह नहीं बता रही है लेकिन फौजी से खूब सवाल पूछ रही है. चलो अच्छा हुआ अब महाबली अकेले अखाड़े में लड़ेगा.

Samajwadi Party candidate Tej Bahadur Yadav after his nomination from Varanasi parliamentary seat was rejected: We have been told that we did not produce the evidence that was asked from us before 11 am. Whereas, we had produced the evidence.