वाया सोशल मीडिया – #justice _for _sanskriti _rai किसी बाप को अफसर नहीं, सिर्फ बेटी चाहिए, वह भी सुरक्षित

लखनऊ/बलिया। प्रदेश की राजधानी लखनऊ और उसके आस-पास के जिलों, विशेष तौर पर पूर्वांचल के लोगों की ओर से सोशल मीडिया पर एक कैंपेन चलाया जा रहा है जस्टिस फॉर संस्कृति राय. #Justice _for _sanskriti _rai हैशटैग के साथ. इसकी वजह राजधानी लखनऊ में 22 जून 2018 को हुई 17 साल की एक लड़की की हत्या है, जिसका नाम संस्कृति राय था. उसे अपने किराए के घर से मात्र तीन किलोमीटर दूर बादशाहनगर स्टेशन पर जाना था, लेकिन वह वहां नहीं पहुंच सकी. अगले दिन झाड़ियों में उसकी लाश मिली, जिसके बाद यूपी पुलिस और योगी आदित्यनाथ पर लोगों का गुस्सा भड़क गया.

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हमारी संस्कृति का मर जाना – धनंजय पांडेय (युवा पत्रकार – प्रभात खबर)

दो साल पहले मेरे एक परिचित की बेटी ने अच्छे नंबर से 12वीं पास की और बनारस में रहकर पढ़ना चाहती थी. उसके पिता किसी हाल में मुजफ्फरपुर से बनारस भेजने को तैयार नहीं थे. लगभग अपनी जिद पर थे. बेटी ने भी जिद पकड़ ली थी. बदलते माहौल और बेटियों की आत्म निर्भरता सरीखी कहानियों से बाप की हामी लेने की कोशिश फेल हो चुकी थी. संयोग से एकदिन मेरे सामने चर्चा हुई, तो मैंने भी सोच बदलने के लिये कुछ किस्से सुना दिये. लेकिन मेरे मित्र बिना कुछ कहे अपनी बात पर अडिग रहे. मेरी समझ में कुछ नहीं आया. हां, उनके रवैये पर गुस्सा बहुत आया. कुछ दिनों तक मेरी बात भी नहीं हुई. मुझे लग रहा था इसी पुरानी सोच ने बेटियों के पांव में बेड़ी लगा रखी है.
लेकिन आज लग रहा कि वह सही थे. किसी बाप को अफसर नहीं, सिर्फ बेटी चाहिये, सुरक्षित. बलिया की संस्कृति के साथ जो हुआ, उस पर मेरी पूरी सहानुभूति उसके परिजनों के साथ है. लेकिन मन में यह सवाल भी है कि बेटियों को हम सुरक्षित माहौल भी क्यों नहीं दे पा रहे. क्या यह जिम्मेदारी केवल सरकार पर थोपकर हम आजाद हो सकते है. यही हाल रहा तो एक-एक कर हमारी संस्कृति खत्म होती जाएगी. हम जिस तरह कोख में बेटियों को बचाने का अभियान चला रहे है, बाहर आने के बाद भी सुरक्षा करना होगा. (फेसबुक वाल से साभार)