रागिनी हत्याकांड हमारी सोच की तय हो रही नई दिशा का संकेत भी है……

कृष्णदेव नारायण राय (पूर्व अध्यक्ष – काशी पत्रकार संघ)

छोटे-छोटे शहरों में बड़ी से बड़ी खबरें भी अमूमन गुम हो जाती हैं. यही वजह कि बड़ी घोषणाएं भी दिल्ली से ही होती हैं. बलिया में एक छात्रा की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी जाती है. छोटी खबर छपती है और हत्यारे की गिरफ्तारी खबर बड़ी हो जाती है, क्योंकि वह गोरखपुर में अपेक्षाकृत बड़े शहर में पकड़ा जाता है. मानवता को शर्मसार करने वाली खबर छोटी, पुलिस का गुडवर्क बड़ा.

साथ में बलिया पुलिस यह सफाई भी सोशल साइट पर लगे हाथ परोस देती है कि संकोचवश पीड़ितों ने पुलिस से संपर्क नहीं किया. पुलिस को पल्ला झाड़ने के लिए कुछ तो चाहिए था. यही सही….. वह भी तब जिला पुलिस की मुखिया स्वयं एक महिला हैं. हद तो तब हो गई….. जब कुछ पत्रकारों ने आततायियों के जुल्म की इस दास्तां को ट्वीस्ट कर पुलिस की थ्योरी को आधार बना प्रेम व बेवफाई के किस्से बांचने शुरू कर दिए….. ताकि पूरी बहस की ही दिशा बदल जाए. यह तो रही हमारी अब के दौर की पत्रकारिता.

अब आते हैं अपने रहनुमाओं की सोच पर. कोई बयान नहीं, कोई आन्दोलन नहीं. अपराधमुक्त मुक्त उत्तर प्रदेश की सरकार को भी इस घटना को जिस गम्भीरता से लेना चाहिए था, नहीं लिया. उल्टे यह नसीहत कि इक्का-दुक्का वारदातों को कानून व्यवस्था की स्थिति का आईना न माना जाए. अर्थात साहब परीक्षार्थी भी खुद होेंगे और परीक्षक भी. तब तो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा केवल नारा बन रह कर जाएगा, क्या ऐसे ही पढ़ेगा इंडिया और ऐसे ही बढेगा इंडिया? स्थानीय लोगों की माने तो प्रिंस सरीखे दर्जन भर से ज्यादा लफंगे आए दिन वहां अड्डेबाजी कर रहे थे…. छात्राओं के नाक में उन्होंने दम कर रखा था. रागिनी के घर पर पथराव तक की घटनाएं हुईं. तस्वीरें खिंची जा रही थीं और पुलिस तथा हमारा समाज रागिनी की नृशंस हत्या की बाट जोहता रहा. कहां है बागी बलिया का वह तेवर, जो गांव की किसी भी एक बेटी के ब्याह में पूरा पूरा का गांव बेटिहा बन जुट जाता था? आज एक मासूम को यूं ही सड़क पर तड़प तड़प करते मरते देखता रहा. क्या हम इतने गम्भीर सवालों पर भी उदासीन रहेंगे? रागिनी की हत्या एक किशोरी मात्र की हत्या नहीं है. यह केवल अपराध भर नहीं है. यह हमारी सोच की तय हो रही नई दिशा का संकेत भी है.

This item is sponsored by Maa Gayatri Enterprises, Bairia : 99350 81969, 9918514777

यहां विज्ञापन देने के लिए फॉर्म भर कर SUBMIT करें. हम आप से संपर्क कर लेंगे.

रागिनी से संबंधित अन्य खबरों के लिए कृपया यहां क्लिक या टैप करें

सत्ता के लिए प्राथमिकता सियासत की बाजीगरी है, प्रतिपक्ष के लिए अपना अस्तित्व. हैरत है कि यह घटना प्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के चुनाव क्षेत्र में घटी है, फिर भी सियासी गलियारे में खामोशी है. नारी जागरण और नारी चेतना के मंच भी खामोश हैं. रागिनी का गांव शोक में है, शहर अगस्त क्रांति की हीरक जयन्ती मनाने की तैयारी में, प्रदेश रोमियो स्क्वायड के प्रबंधन में और देश गुजरात चुनाव की तैयारी में जुटा है. और इधर पूरे इत्मीनान से लबे सड़क कत्ल कर दी गई एक निरीह लाचार बिटिया.

पूर्वान्चल अलग प्रदेश के लिए ट्रेन रोकने वालों पूर्वान्चल की बेटियों का कैसे बचाओगे? कानून तो अपना काम करेगा, आप अपना काम कब करोगे. एक गाली पर नारी अस्मिता का तूफान खड़ा करने वाली भारतीय संस्कृति और सभ्यता की अलम्बरदार महिला नेत्री कहां हैं? आखिर इस बेटी के सम्मान में कौन उतरेगा मैदान में? शायद इस बार उनका अपना कोई नहीं फंसा है. राजनीति जब दोगली हो जाती है तो मुल्क को श्मशान में तब्दील होते देर नहीं लगती.