लोकतंत्र की तंदुरुस्ती के लिए युवाओं की भागीदारी बढ़े – दिव्य कुमार गुप्ता

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बकौल पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भारत जनसांख्यिकीय रूप से दुनिया के सबसे युवा राष्ट्रों में शुमार किया जाता है. हमारे देश में युवाओं की आबादी 60 करोड़ के करीब है. जिसमें 16 करोड़ पंजीकृत मतदाता हैं. भविष्य में युवा मतदाताओं की संख्या निरंतर बढ़नी है. इस परिदृश्य में यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि युवा लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अभिन्न व जोशीले अंग बने रहे. पुणे स्थित एक संस्थान के सर्वेक्षण से पता चला है कि राज्य के 84 फीसदी मतदाताओं को 40 साल से कम उम्र वाले उम्मीदवार पसंद हैं. फिर भी युवाओं को भागीदारी देने के मामले में हमारे राजनीतिक दल कंजूसी करते हैं. यूपी विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में बनारस में वोट डाले जाएंगे. प्रस्तुत है वाराणसी शहर उत्तरी 388 राष्ट्रीय लोकदल के युवा प्रत्याशी दिव्य कुमार गुप्ता से बातचीत के मुख्य अंश

राजनीति में ही भागीदारी की बात कैसे सूझी?

अमूमन राजनीति में भागीदारी या कहिए करियर के तौर पर राजनीति से युवा परहेज करते हैं. जाहिर है यदि आप खुला मैदान छोड़ देंगे तो कोई न कोई तो उस गैप को पाटेगा. इसलिए जरूरी है कि आप सक्रिय भागीदारी करें. मेरा मकसद क्लियर है – मैं युवाओं के ही सहयोग से राज्य की महिलाओं की सुरक्षा व व्यापारियों का सम्मान सुनिश्चित करूंगा. आज हर न्यूज चैनल, समाचार पत्र व राजनीतिक दल हर क्षेत्र में युवाओं की मजबूत हिस्सेदारी की बात करते हैं. युवा पीढ़ी को देश की रीढ़ बताते हैं. यह शत प्रतिशत सच है कि युवाओं की बदौलत ही देश विकास की नई राह पर चल रहा है. देश की आबादी में आधे से ज्यादा प्रतिशत युवा पीढ़ी का ही है. इसलिए देश युवा हो चला है. हम लोकतंत्र में युवाओं के लिए आरक्षित हिस्सेदारी के हिमायती हैं. अमूमन इस देश के राजनीतिक दल युवाओं को पार्टी का छोटा मोटा पद देकर सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते है. चुनाव बाद उन्हें कोई नहीं पूछता. इतने से काम नहीं चलेगा.

युवा शब्द को आप कैसे परिभाषित करते हैं?

45 की उम्र में देश का सबसे युवा प्रधानमंत्री…….. उम्र 40 पार, पर नेताजी युवा हृदय सम्राट….. अब आप बताइए कि अगर 40-45 की उम्र में आप युवा का तमगा लगा सकते हैं तो 35 साल की उम्र के बाद सरकारी नौकरी क्यों नहीं मिलती? पृथ्वीराज चौहान, भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद सरीखे महान लोगों ने युवा भारत की बुनियाद रखी थी. बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों व कारोबारी दुनिया में युवा नई बुलंदियों को छू रहे हैं. इसलिए अगर राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ती है तो सशक्त भारत का निर्माण भी सुनिश्चित हो सकेगा. मेरा निजी तौर पर मानना है कि युवा पीढ़ी ही भ्रष्टाचार विरोधी है. संविधान में भी लोकतंत्र में भागीदारी के लिए न्यूनतम उम्र 25 वर्ष मानी गई है. इसलिए हम लोकतंत्र में 25 से 40 तक की उम्र के लोगों के लिए आरक्षित हिस्सेदारी की मांग करते हैं. लोकसभा व विधानसभा समेत हर स्तर पर यह व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार से निजात हमें तभी मिल सकती है.

मगर आबादी के अनुपात में युवाओं की भागीदारी सत्ता के गलियारे में है कहां?

सच्चाई तो यह है कि इस देश के जमे जमाए मठाधीश कभी नहीं चाहेंगे कि सत्ता की चाबी नौजवानों के हाथों में जाएं. यदि सत्ता पर पढ़े लिखे उर्जावान नौजवान हावी हो गए तो उनकी तो दुकानदारी ही बंद हो जाएगी. इस देश-प्रदेश में जातिवाद व सांप्रदायिकता कोई मुद्दा नहीं है. सच्चाई तो यह है कि राजनीतिक दल ही नहीं चाहते कि जनता इससे ऊपर उठकर सोचे. वे सुनियोजित ढंग से जाति व धर्म के आधार पर उम्मीदवार घोषित कर, बैठकें-आयोजन आदि कर लोगों को लकीर का फकीर बनाते हैं, ताकि उनका उल्लू सीधा हो. युवाओं की भागीदारी बढ़ने पर इससे निजात संभव है.

व्यापारियों के बीच आपकी पैठ अच्छी मानी जाती है, उनकी भूमिका पर रोशनी डालेंगे.

इस देश की पूरी अर्थव्यवस्था व्यापारियों द्वारा दिए जाने वाले टैक्स पर टिका है, मगर विडम्बना यह है कि वही तबका यहां सबसे ज्यादा उपेक्षित है. शिक्षा से लेकर सुरक्षा व सफाई अभियान तक …. हर काम उसी की बदौलत संभव है. यहां तक कि उन्हीं के द्वारा दिए गए चंदे व सहयोग से इस देश के राजनीतिक दलों का संचालन होता है. इस देश के राजनेता उनके पैसे से चुनाव लड़ते हैं. इसके बाद उसी तबके को प्रताड़ित करने में जुट जाते हैं. मेरी समझ से व्यापारियों को और कुछ नहीं, बस एक ईमानदार व स्वच्छ माहौल चाहिए, जहां वे खुद को प्रताड़ित या शोषित न महसूस करें. नितांत छोटे स्तर के व्यापारियों मसलन सब्जी बिक्रेताओं के लिए अलग मार्केट की व्यवस्था होनी चाहिए, वहां पार्किंग, शौचालय, शुद्ध पेयजल, बिजली आदि जरूरते पूरी की जानी चाहिए. इसके अलावा एक क्षेत्रीय व्यापारिक शिकायत केंद्र की भी व्यवस्था होनी चाहिए. ताकि वे अपनी समस्याएं वहां बता सकें और उसका त्वरित समाधान भी किया जाए.

आम लोगों की दिक्कतों पर आपकी क्या राय है?

देखिए अच्छी सड़क, बिजली, शुद्ध पानी, भोजन आदि आदि सबके लिए सहज सुलभ होना ही चाहिए. किसी भी सूरत में इसके लिए लोगों को जनप्रतिनिधियों के यहां जूता नहीं घिसना चाहिए. यहां तो नेताजी के पास जीतने के बाद लोगों से मिलने तक की फुर्सत नहीं होती. सारी समस्याएं यहीं से शुरू होती हैं. चुनाव के मौके पर गली नुक्कड़ तक में नेताजी का कार्यालय खुलता है, जीतने के बाद किसी वीवीआईपी कॉलोनी में, आम लोगों की वहां तक पहुंच ही नहीं होती. मेरा मकसद है कि आम लोगों तक से जनप्रतिनिधि का तार अवश्य जुड़ा रहना चाहिए, ताकि छोटी मोटी समस्याओं को लेकर आम लोग परेशान न हो.

चुनाव के दौरान अमूमन नेताओं व प्रत्याशियों की भीड़ इकट्ठी हो जाती है, हार जीत अपनी जगह है. क्या चुनाव बाद भी आप यूं ही सक्रिय रहेंगे.

मैं बहुत स्पष्ट तौर पर कहना चाहता हूं कि जनादेश चाहे जो हो, हम सदैव जनता के साथ हैं. जनता की सहूलियतों के लिए हमारी लड़ाई जारी रहेगी. हर क्षेत्र में स्ट्रीट लाइट व आटो स्टैंड की व्यवस्था होनी चाहिए. कन्या विद्यालयों की तादाद बढ़ाई जानी चाहिए. प्राथमिक विद्यालयों में तकनीकी विकास व गुणवत्ता पूर्ण भोजन की व्यवस्था होनी चाहिए. हर क्षेत्र में सीवर पानी आदि की व्यवस्था होनी चाहिए. इलाके के तालाबों को बचाने व उनके सुंदरीकरण के लिए कारगर पहल की जानी चाहिए.