बलिया। पछुआ हवा के सर्द प्रहार को पराजित करते हुए मकर संक्रान्ति पर हजारों अस्थावानों ने पतित पावनी गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य लाभ लिया. भीषण ठण्ड से लड़ते हुए नगर व ग्रामीण क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का रेला शनिवार को तड़के से ही गंगा तट पर पहुंचना शुरू हुआ, जो काफी दिन चढ़ने तक जारी रहा. तट पर मौजूद पंडित वर्ग ने अस्थावानों को संकल्प कराया. उसके बाद भीड़ नगर के प्रसिद्ध मन्दिरों भृगु बाबा, बालेश्वर बाबा आदि के दर्शन कर वापस लौटने लगी. परम्परा के अनुसार लोग घर पहुंचकर दही व चिऊड़ा का सेवन किए. बच्चों ने घर पर बने तिल व लाई के लड्डूओं का आनन्द लिया. रात में हर घर में खिचड़ी का सेवन करना भी आज की परम्परा है.
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बताते चले कि मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है. यह पूरे भारत व नेपाल में विभिन्न नामों से मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में आता है तब इस पर्व को मनाया जाता है. मकर संक्रान्ति के दिन से ही सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है. इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है, इसलिए कहीं-कही इस पर्व को उत्तरायिणी भी कहते है. तमिलनाडु में इसे पोंगल तथा कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे संक्रान्ति नाम से मनाते है. इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि का विशेष महत्व है. इस दिन शुद्ध घी व कम्बल दान का विशेष महत्व है. इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहा गया है कि माधे मासे महादेवः यो दास्यति घृत कम्बलम, स भुक्त्वा सकलान मंागान अन्ते मोक्ष प्राप्यति.