लकड़सुंघवा टू बच्चा चोर वाया मुंहनोचवा-चोटीकटवा

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डिजिटल इंडिया में बंदरों के हाथ में उस्तरा

विजय शंकर पांडेय

(पत्रकार)

बचपन में बलिया में अपने गांव आते थे तो धूप में घर के बाहर या गांव में उधम हम बच्चे न मचाए…. इसलिए बड़े बुजुर्ग हमें लकड़सुंघवा की धमकी दे डराते थे…. ताकि हम अपनी हद में रहे…. वरना लकड़सुंघवा उठा ले जाएगा… हम मान भी जाते थे…. कारण तब तक हम इस हद तक डिजिटलाए नहीं थे…. कमोबेश यही धमकी हमें हावड़ा (पश्चिम बंगाल) में भी मिलती थी… हावड़ा से कलकत्ता (अब कोलकाता) को जोड़ने के लिए सेकंड हुगली ब्रिज (बिद्यासागर सेतु) का निर्माण कार्य शुरू हुआ था. शिलान्यास तो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1972 में ही कर दिया था, मगर काम शुरू हुआ 1979-80 के बाद. दीनबंधु क़ॉलेज, शिबपुर के ठीक बगल में हट्ठे कट्ठे पिलर के फाउंडेशन का काम शुरू हुआ. हम बच्चों के बीच यह अफवाह फैली या फैलाई गई कि उसके करीब न जाए, वरना बच्चा चोर उठा ले जाएंगे और बलि दे दी जाएगी.

किसी जमाने में नरबलि की परंपरा हुआ करती थी

बंगाल में नावें बनाने वालों में भी ऐसी धारणा होने का जिक्र एसएन रॉय ने अपनी किताब ‘मैन इन इंडिया’ में किया है. नाव तले के तख्ते में छेद कर उसमें रक्त की कुछ बूंदें गिराई जाती थी. मान्यता थी कि इस वजह से वे पानी के जीवों की भांति सजीव हो जाया करती थीं. जिस तलवार से शत्रु का वध किया जाता वह भी पवित्र मानी जाती थी. उसमें सिंदूर से आंखें बना देने की प्रथा का जिक्र भी उस किताब में है. इसी तरह असम के कुछेक नागा जातियों में मकान बनाने के लिए जो मुख्य खंभा खड़ा किया जाता था, उसके लिए खोदे गए गड्ढे में मुर्गे की बलि देने की प्रथा भी थी. कहा जाता है कि वहां कुछ जातियों में तो फिजी की भांति खंभों को खड़ा करने कि लिए किसी जमाने में नरबलि की परंपरा हुआ करती थी.

शॉर्ट इंटरवल पर ये हमारा मनोरंजन करते रहते हैं

खैर यह सब जानकारी तो बाद में मुझे लिखने-पढ़ने के दौरान हुई. मगर उस वक्त मेरे बाल मन पर उस अफवाह का ऐसा असर था कि शाम होते ही उधर से गुजरते वक्त दीनबंधु कॉलेज क्रॉस करते ही रोंगटे खड़े हो जाया करते थे. अब भी जब कभी हावड़ा जाता हूं तो यादें ताजा हो जाती हैं. अब तो काफी कुछ बदल गया है. मगर शॉर्ट इंटरवल पर मूड़ीकटवा, मुंहनोचवा, चोटीकटवा हमारा मनोरंजन करते रहते हैं.

चारों तरफ कई चक्कर लगाया, मगर सुराग हाथ नहीं लगा

कुछ साल पहले बनारस में मेरा पूरा घर मुंहनोचवा या चोटीकटवा टाइप आतंक के साए था. मैंने पूछा – क्या हुआ? चेहरे पर किसी सुपर पॉवर का आतंक लिए पत्नी बोली – छोटू के अंडरवियर पता नहीं कैसे गायब होते जा रहे हैं.
सहेज कर कपड़े तो सलीके से रखती नहीं हो. मिलेंगे कैसे….. खैर छोड़ो…. नया ले आते हैं फिलहाल.
जितना संभव होता है कर देती हूं. और तो कोई घर के काम में मदद करता नहीं है. अगर मैं न एलर्ट रहूं तो बाप-बेटे रोज नहाने के बाद तौलिया लपेटे ही दिन काटोगे.
खैर बेवजह तिल का ताड़ बनाने के नए अंडरवियर बनियान खरीदने की शर्त पर एमओयू पर अदृश्य हस्ताक्षर हो गया. मगर यह घटना हफ्ते दस दिन के अंतराल में तीन या चार बार हो गई. अब कितना नया खरीदा जाए. धीरे-धीरे मामला यहां तक बढ़ा कि घर के अन्य सदस्यों के भी कपड़े गायब होने लगे. यहां तक कि मेरे भी… मीडिया वालों से करीबी संपर्क होने के बावजूद बस मैंने प्रेस कांफ्रेंस नहीं किया था….हालात कंट्रोल से बाहर हो चुके थे. घर के चारों तरफ कई चक्कर लगाया, अपने छत पर भी खंगाला, मगर कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

एक बार तो मुझे लगा कि शाप अब असर दिखा रहा है

संकट गहराता जा रहा था. यूपी में पत्रकारिता करते हुए पहली बार मुंहनोचवा टाइप फीलिंग आने लगी. यह घटना चार-पांच साल पहले की है. करीब 15-16 साल पहले मिर्जापुर के तत्कालीन डीएम ने मुंहनोचवा का साक्षात दर्शन कर तहलका मचा दिया था. इस खबर को छापने के बाद अगले दिन एक पड़ोसी से बहस हो गई थी. मेरे तर्कों का जवाब न दे पाने की स्थिति में उन्होंने मुझे ‘शाप’ देते हुए कहा – जाके पाँव न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई … जब मुंहनोचवा से पाला पड़ेगा न बच्चू… तब सारी पत्रकारिता और एडिटरी धरी रह जाएगी. एक बार तो मुझे लगा कि शाप अब असर दिखा रहा है.
मेरी टेंशन की वजह दूसरी भी थी. जिस मकान में हम रह रहे थे, वह यूपी कॉलेज के एक प्रतिष्ठित प्रोफेसर का मकान था. इलाके में भी सम्मानित लोग थे. उस मकान को हम पूरी तरह सुरक्षित मान रहे थे. हालांकि पत्रकार के घर में होगा भी क्या… कोई अंबानी का बंगला थोड़े ही है. फिर भी जो कपड़े, बर्तन इत्यादि है, वही तो थाती है. अगर कोई इस तरह की वारदात को अंजाम दे रहा है तो क्या गारंटी है कि वह अपने कारोबार का विस्तार न करे. बच्चों पर तो कोई खास प्रभाव नहीं था, मगर पत्नी पड़ोस के मंदिर में प्रसाद इत्यादि चढ़ाने का काल्पनिक वादा कर चुकी थी. संभव है कुछ और भी कमिटमेंट की हो. मगर मारे गुस्से मुझे नहीं बताई. उनकी नजर में सबसे बड़ा अपराधी मैं ही था. निठल्ले पत्रकार से शादी करने की जो फीलिंग उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी, वह शब्दों में बयान करने की क्षमता मेरे पास नहीं है. ऐसा लगता किसी दूसरे प्रोफेशनल से ब्याही होती तो अब तक सीबीआई जांच की मंजूरी मिल गई होती.

छज्जे पर जब चढ़ा तो हतप्रभ रह गया

खैर… भोर के चार-पांच बजे के करीब अचानक मेरी बालकनी में हलचल हुई. खिड़कियों से बाहर झांका तो बंदरों का झुंड दिखाई पड़ा….. कमरे से एक पाइप का टुकड़ा लिए बाहर निकलने की कोशिश करने लगा तो एक बड़ा सा बंदर मोगांबो टाइप आंखें तरेरते हुए गुर्राया. मैं पीछे हट गया. कोई रिस्क लेने के बजाया दरवाजा बंद कर दिया… खिड़की से लाइव नजारा देखने लगा…. उथल पुथल मचाने के बाद वे जब जाने लगे तो वहां सूखने के लिए फैलाए गए एक-दो बनियान पहनते हुए रवाना हुए. लूट की वारदात को मेरी आंखों को सामने अंजाम दिया जा रहा था, मैं असहाय था….थोड़ी देर बाद मैं हिम्मत जुटाकर उनका पीछा किया, मगर वे निकल लिए. उनके जाने के रास्ते का अनुमान लगा मैं छत के ऊपर टंकी रखने के लिए बनाए गए छज्जे पर जब चढ़ा तो हतप्रभ रह गया… मेरे घर के कपड़े थोक के भाव में वहां पड़े मिले…. वहां ऐसे भी कपड़े मिले जिसके गायब होने की हमे अभी भनक भी नहीं थी.

डिजिटल इंडिया में बंदरों के हाथ में भी उस्तरा थमा दिए गए हैं…. कोई शक नहीं कि मोबाइल के कई सकारात्मक फायदे हैं…. मगर तुलसी बाबा लिख गए हैं कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी…. और बलिया जिला में त कहल जाला कि पड़लन राम कुकुर का पाला, खींच खाँच ले गइलसि खाला…. सूचना क्रांति का सदुपयोग कम दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है…. अफवाहों के वैसे भी पांव नहीं होते….

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

पिछले दिनों किसी निरीह लाचार भिखारिन को बलिया में बच्चा चोरी के शक में पिट दिया गया तो उसके अगले दिन सिकंदरपुर बस स्टैंड पर लड़की चोरी की अफवाह में एक युवती पर अराजक तत्वों की भीड़ ने अपनी बहादुरी दिखा दी…. मीडिया के हवाले से जो सूचनाएं मिलीं… उसके मुताबिक उक्त युवती आजमगढ़ की रहने वाली है और कम्प्यूटर शिक्षा के प्रचार प्रसार के सिलसिले में सिकंदरपुर पहुंची थी… कुछ दिन पहले इसी तरह बैरिया में एक बुजुर्ग महिला को लोगों ने पकड़ा था…. खैरियत थी कि वहां के समझदार युवकों ने बड़े बुजुर्ग की सलाह पर उक्त महिला को पुलिस के हवाले कर दिया… पिछले दिनों मनियर थाना क्षेत्र में इस तरह की सूचनाएं मिली थी… मगर बच्चा चोरी की कोई पुख्ता रिपोर्ट फिलहाल नहीं है… पुलिस के आला अधिकारी भी इस मुद्दे पर लोगों से संयम बरतने और अफवाहों पर कान न देने की अपील कर चुके हैं….
इसी बीच आज बलिया के हल्दी थाना क्षेत्र से एक सज्जन का फोन आया… पता चला कि उनके गांव का एक लड़का दिल्ली में कोई प्राइवेट जॉब करता है… कुछ दिन पहले इसी तरह अराजक भीड़ ने राह चलते उसे पकड़ कर जमकर कोई बहाना बना कर पीट दिया…. अब उसकी हालत नाजुक बताई जा रही है…

याद रखिए यह तथाकथित अराजक भीड़ किसी दमदार पर हाथ रखने की गुस्ताखी कभी नहीं करती….. अमूमन उसके निशाने पर निरीह और लाचार लोग ही होते हैं…. फिर बलिया की तो अच्छी खासी आबादी रोजी रोटी के चक्कर में कहीं न कहीं बाहर है…. जरा उनका भी ख्याल रखिए…. अफवाहों पर भरोसा मत कीजिए… पुलिस प्रशासन को अपना काम करने दीजिए…. बकौल राहत इंदौरी – लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में, यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है.

चलते चलते एक ताजा खबर

सही निकला बलिया लाइव का अंदेशा…. ग्रामीणों ने बच्चा चोर समझकर पीटने के बाद एक बुजुर्ग को पुलिस को सौंपा था, शनिवार की रात नौगढ़ बाजार में पकड़ाए अर्धविक्षिप्त बुजुर्ग बलिया के सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के वीरबल कश्यप निकले… वीरबल 12 साल पहले भटक गए थे. अखबार में बच्चा चोर के आरोप में पिटाई की खबर और फोटो देखने के बाद उनका बेटा विनोद नौगढ़ (चंदौली) पहुंचा और पिता को इतने साल बाद देखते ही रो पड़ा. पिता भी अपने आंसू नहीं रोक सके. विनोद ने बताया कि पिता की मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती है. इसलिए बगैर किसी के बारे में पूरी जानकारी किए बदसलूकी न करें.