‘संसार से विषमता के नाश के लिए हुआ था त्रिदंडी स्वामी का जन्म,’ 25वीं पुण्यतिथि पर याद किए गए

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के के पाठक, बलिया

बलिया. ईश्वर प्रत्यक्षानुभूति है, जिसे प्रमाणित करना संभव नहीं. ब्रह्म की अनुभूति पत्थर-  पहाड़, जीव तथा शिव में, अणु परमाणु में तथा ब्रह्मांड के कोने में समान रूप से की जा सकती है. मूलतः मानव की उत्कृष्ट काया ही ईश्वर की सफल एवं सशक्त अभिव्यक्ति है.

उक्त उद्गार त्रिदण्डी स्वामी के शिष्य व गंगा मुक्ति एवं प्रदूषण विरोधी अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी रमाशंकर तिवारी ने त्रिदण्डी स्वामी की 25वीं पुण्यतिथि के अवसर पर “ब्रह्म सत्यम-जगत मिथ्या” विषयक विमर्श के दौरान व्यक्त किया. उन्होंने कहा कि सत्य की अंतिम पराकाष्ठा ईश्वरीय सत्ता में समाहित है. कहा कि त्रिदण्डी स्वामी का अवतरण संसार की विषमता का समूल नाश के लिए हुआ था. ऐसा वीतरागी मिलना दुर्लभ है.

कार्यक्रम की शुरुआत उपस्थित त्रिदण्डी स्वामी के शिष्यों ने 108 बार गायत्री जप तथा हरिकीर्तन के साथ किया। सर्वप्रथम डॉ0 जनार्दन राय ने त्रिदण्डी स्वामी के चित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलन कर संन्यास धर्म की विस्तार से विवेचना की इस अवसर पर मंगल पांडेय विचार सेवा समिति के अध्यक्ष केके पाठक ने त्रिदण्डी स्वामी की वैचारिक चेतना की सराहना की. इस मौके पर विनय पांडेय, ऋषि कुमार, विनोद ठाकुर, प्रवीण गिरी, धीरज यादव, रामधनी सिंह, शिवाशंकर मिश्र आदि लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये.

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