…तब जल्लादों ने बढ़ा दी थी मंगल पाण्डेय की आयु

शहादत दिवस पर याद किए जाएंगे स्वतंत्रता संग्राम के महानायक

बलिया। किसी मानव को फांसी पर चढ़ाने के लिए जल्लादों को जाना जाता है. परंतु बैरकपुर के जल्लादों ने स्वतंत्रता संग्राम के महानायक बलिया के धरती के लाल मंगल पाण्डेय की आयु ही बढ़ा दी थी. सुनने में तो यह अजीब सा लग रहा है. परंतु 1857 की घटना पूरी तरह सच है. यह भारतीय तथा ब्रिटिश इतिहास में दर्ज है.

अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरूद्ध 29 मार्च 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम अध्याय नगवा निवासी वीर सपूत अमर शहीद मंगल पाण्डेय के प्रथम विद्रोह व प्रथम बलिदान से लिखा गया है. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध विद्रोह करने के बाद घोड़ा सहित लेफ्टिनेंट बाॅफ को मौत के घाट उतार दिया. विद्रोह की चिंगारी को बुझाने आये लेफ्टिनेंट ह्यूसन को भी गोलियों से भूनकर भले ही आठ अप्रैल 1857 को फांसी का फंदा गले लगा लिया परंतु शहादत के इतिहास में क्रांति का एक नया इतिहास रच दिया.
छः अप्रैल 1857 को सायं साढे़ छः बजे फौजी अदालत ने निर्णय सुनाया कि 34 नम्बर के देशी पैदल सेना के 1446 नम्बर के सिपाही मंगल पाण्डेय को मौत की सजा दी जाती है. फांसी के लिए सात अप्रैल 1857 की तिथि मुर्करर की गयी। जनरल हियर्सी ने जारी किया कि सात अप्रैल को सुबह साढे़ पांच बजे ब्रिगेड परेड मैदान में मंगल पाण्डेय को फांसी दी जायेगी. परंतु ऐन वक्त पर बैरकपुर के जल्लादों ने मंगल पाण्डेय को फांसी देने से इनकार कर दिया. अगले दिन जल्लादों को कलकत्ता से बुलाया गया. परंतु उन्हें यह नहीं बताया गया कि फांसी किसे देनी है.
आठ अप्रैल 1857 को फांसी का मंच बनाया गया. तोप छूटते ही सिपाही मंच का त्रिकोण बनाकर खडे़ हो गये. एक तरफ 70, 43 एवं दो नम्बर के कम्पनियां के सिपाही खडे़ थे. उनके साथ मंगल पाण्डेय के कम्पनी के सिपाही भी थे. मंच के ठीक सामने गवर्नर जनरल के अंगरक्षक तथा 53 नम्बर एवं 84 नम्बर के गोरे सैनिकों की टुकड़ी मौजूद थी. कड़ी सुरक्षा के बीच मंगल पाण्डेय को तड़के साढे़ पांच बजे फांसी पर झुला दिया गया. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की इस प्रथम आहुति के देखते ही देखते सम्पूर्ण भारत को प्रचण्ड विद्रोह लपटों में ले लिया. हजारों नर-नारियों के बलिदान स्वरूप हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ.

इनपुट: केके पाठक संपादक बलिया लाइव

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