पर्यावरण को बचाने के लिए लॉकडाउन सरीखे उपाय रामबाण

अभिनव पाठक

लिया। वर्तमान समय में लॉकडाउन के प्रभाव से पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र के सभी अवयव (कारक) अपने प्राकृतिक परिवेश में स्वतंत्र रूप से विकसित होकर तथा पुष्पित एवं पल्लवित होकर पूरे निखार पर हैं. ऐसा कहना है श्री गणेशा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट बलिया के न्यासी (ट्रस्टी) अभिनव पाठक का. वे लॉकडाउन एवं पर्यावरण के अन्तर्संबंधों के संदर्भ में अपना विचार व्यक्त कर रहे थे.

उन्होंने बताया कि कोविद-19 से बचाव हेतु जो लाँकडाउन का विधान बनाया गया, उससे न केवल हमारी दिनचर्या बदल गयी, बल्कि पूरा परिवेश ही बदल गया. मानव की गतिविधियों के बंद हो जाने से काबर्न डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड आदि विषैली गैसों का निकला बंद हो गया. यही नहीं उद्योग धंधों के बंद हो जाने से भी सभी प्रकार कु विषैली गैसों एवं कूड़ा कचरा का निष्कर्षण बंद हो गया, जिससे वायुमंडल में विषैली गैसें नहीं पहुँचने से वायुमंडल स्वच्छ हो गया और यहाँ तक कि ओजोन परत में होने वाला छिद्र भी काफी हद तक भर गया.

सभी प्रकार के परिवहन, औद्योगिक एवं आर्थिक गतिविधियों के बंद हो जाने से जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण में काफी कमी आ गयी है. नदियों में जल का प्रदूषण कम हो गया है.
लॉकडाउन काल में गंगा नदी में प्रदूषण काफी कम हो गया है, जल की मात्रा में वृद्धि हो गयी है. जलधारा अविरल एवं प्रवाहमान हो गयी है, जलीय जीवों की संख्या में भी वृद्धि हुई है. इस तरह लॉकडाउन मे न केवल गंगा, बल्कि सभी नदियों का जल शुद्ध होकर स्वच्छ हो गया है.

यही नहीं नदियों के अलावा पर्यावरण के जितने भी अवयव (तत्व) हैं, उनको भी लॉकडाउन ने एक नयी संजीवनी प्रदान की है. सम्पूर्ण पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी अपने पूरे सवाब हैं. वातावरण की स्वच्छता एवं शुद्धता के चलते समय-समय पर इन्द्रदेव भी प्रसन्न होकर वर्षा प्रदान कर रहे हैं. वृक्षों, झाड़ियों एवं पुष्पों को हरा- भरा करके पुष्पों से सुशोभित कर रहे हैं. असमय ही पुष्प खिल उठे हैं और अपनी मोहक छटा बिखेर रहे हैं.

लॉकडाउन के दौरान वायु प्रदूषण में भी काफी कमी आयी है. ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी कम हो गया है. किन्तु अब ऐसा देखने में आ रहा है कि ज्यों ही लॉकडाउन में ढील दी गयी और मानवीय गतिविधियाँ बढ़ने लगी हैं, धीरे- धीरे वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण एवं जल प्रदूषण की रफ्तार में भी तेजी आने लगी है. यह अनुभव होने लगा है कि जब लाँकडाउन पूर्णतः हट जायेगा और सारी गतिविधियाँ चालू हो जायेंगी, जैसे उद्योग धंधे चलने लगेंगे, परिवहन का संचालन होने लगेगा और मानवीय गतिविधियाँ तेज हो जायेंगी, पर्यावरण का अवयवन एवं प्रदूषण भी पुनः अपनी पुरानी स्थिति को प्राप्त करता जाएगा और पुनः हमारी चिंता बढ़ती जायेगी.

उपरोक्त संदर्भ में क्या यह सम्भव नहीं है कि पर्यावरण को सुरक्षित एवं संरक्षित रखने के लिए तथा चिरकाल तक पर्यावरण के कारकों को अक्षुण बनाये रखे जाने के लिए एवं प्रदूषण को कम स्तर पर रखने हेतु इस तरह के लॉकडाउन की प्रक्रिया को हम समय – समय पर लागू करते रहें. ताकि हम पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी को सुरक्षित तथा संरक्षित रख सकें. क्या यह नहीं हो सकता कि सरकार समय – समय पर पर्यावरण संरक्षण हेतु भी लॉकडाऊन के नियमों का पालन करने हेतु कानून बनाए. धीरे-धीरे यह लॉकडाउन जब हमारे जीवन का अंग बन जायेगा तो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के कारक भी सुरक्षित रहते हुए एवं विकसित होते हुए मानव जीवन को भी सुरक्षित एवं संरक्षित रख सकेंगे. और प्रदूषण की भी भयंकर स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा. जिससे हमारा भविष्य भी सुरक्षित रहेगा.

आज इस पर्यावरण दिवस पर हम आप सबसे अपील करते हैं कि लॉकडाउन में हम सबने जीवन जीने की एक नयी प्रक्रिया प्राप्त कर ली है, जो हमारे लिए प्रत्येक दृष्टि से सुरक्षित है. हम स्वतः भी समय – समय पर लॉकडाउन के नियमों का अपने स्तर पर पालन करते हुए पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तंत्र को सुरक्षित रख सकते हैं.

फोटो – पवन तिवारी

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