बलिया के सुरहा ताल में पहुंचने लगे सैलानी पक्षी

बांसडीह, बलिया. सुरहा ताल या सुरहा गंगा और सरयू के दोआब में स्थित एक गोखुर झील है जो गंगा नदी द्वारा निर्मित है। यह उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में स्थित है और बलिया शहर से थोड़ी दूर पश्चिम में स्थित है। यह ताल प्रवासी पक्षियों के लिये प्रसिद्ध है और अब इसे सुरहा ताल पक्षी विहार भी घोषित किया जा चुका है।

मौसम के पारा का अंदाज लगाना है तो एक बार बलिया के सुरहा ताल की तरफ नजर घुमा लीजिए निश्चित ही विदेशी पक्षियों को देखकर मन में खुशी होगी। जिला मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर सुरहा ताल का नजारा इन दिनों देखने लायक है। सर्दी के मौसम में उन पक्षियों के लिए कश्मीर से थोड़ा भी इतर नही है।

सुरहा ताल प्रवासी पक्षियों के लिये प्रसिद्ध.

बलिया में करीब 10 किमी की दूरी में सुरहा ताल पक्षी विहार अपनी पहचान अलग रूप में दिखा रहा है। ठंड के समय में देशी नही विदेशी पक्षियों के आने का सिलसिला अनवरत जारी है। सुरहा ताल इलाका में पक्षियों का सर्द की हवाओं में आकाश के नीचे मस्ती भरी अंदाज देखते ही बन रहा है। हालांकि इन पक्षियों पर शिकारियों की तीखी नजर रहती है। इन विदेशी पक्षियों में कितने बचकर अपने वतन वापस जा पाएंगे, यह तो सुरहा ताल के आस – पास के लोगों तथा सुरक्षा के मद्देनजर विभाग पर निर्भर करता है।

 

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सुरहा ताल प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध ताल

सुरहा ताल गंगा और सरयू नदी के बीच मे स्थित है। इसे गोरखु झील भी कहा जाता जाता है। वजह कि दोनों नदियों से यह बना ताल है। यह झील पक्षी विहार नाम से घोषित है। प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध ताल हो गया है।

बता दें कि सर्दी शुरू होते ही परदेश से हजारों की संख्या में लगभग 14 किमी क्षेत्रफल में फैले सुरहा ताल में विदेशी पक्षियों के आने का क्रम शुरू हो जाता है। आने वाले परिंदे करीब एक-डेढ़ दशक पहले यहां आने के बाद पूरी तरह महफूज रहते थे। ताल के किनारे स्थित गांवों के बड़े व बूढ़े इन विदेशी महमानों को पानी में अटखेलियां करते देख खुश होते थे। इधर के कुछ वर्षों से स्थानीय लोगों ने इनका शिकार कर खाना और बेचना शुरू कर दिया।

 

हजारों मील की दूरी तय कर पहुंचते हैं पक्षी

धीरे-धीरे कुछ लोगों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया। इस बात का असर इनके आवक पर भी पड़ा और कुछ नस्लों के पक्षियों ने तो यहां का रुख करना ही बंद कर दिया। इस साल सर्दी के साथ हजारों मील की दूरी तय कर प्रवासी पक्षी पहुंच रहे हैं। शिकारी भी अब उन्हें निवाला बनाने की टोह में जुट गए हैं। ऐसे में प्रशासन की जिम्मेदार बढ़ गई है।

सूत्रों की माने तो आये दिन जहर से मारकर पक्षियों को दो सौ से तीन सौ रुपये बेचा जाता है। और स्थानीय लोग भी शामिल रहते हैं।

 

वाइल्ड लाइन पर है सुरक्षा का जिम्मा

राजा सुरथ के नाम से जुड़े सुरहा के किनारे बसे गांवों फुलवरिया, बघौता, मैरीटार, कैथवली, सूर्यपुरा, दतिवड़, शिवपुर और बंसतपुर आदि गांवों को बीच से चीरते हुए बारहों मास बहने वाले सुरहा ताल में पैदा होने वाले ललका, सूर्यपंखी, टुड़ैला आदि धान को खाने के लिए आने वाले प्रवासी मेहमानों को शौकीनों का निवाला बनने से रोकने के लिए कुछ साल पहले शासन ने ताल को संरक्षित क्षेत्र घोषित किया। साथ ही इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी काशी वन्य जीव प्रभाग रामनगर वाराणासी के हवाले कर दी। बावजूद, उनके शिकार होने का सिलसिला थम नहीं पा रहा है। अब देखने वाली बात यह है कि इस साल इन परदेशी परिदों की सुरक्षा वन विभाग किस हद तक कर पाता है।

(बांसडीह संवाददाता रवि शंकर पाण्डेय की विशेष रिपोर्ट)

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