जीवित्पुत्रिका व्रत 29 सितंबर को, इस व्रत का महत्व और कथा

नगरा, बलिया. अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है. इस व्रत को जितिया या जिऊतिया व्रत भी कहते हैं. इस दिन महिलाएं अपने संतान की लंबी उम्र के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की लंबी उम्र होती है. ये व्रत मुख्यरूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में किया जाता है. जिऊतिया का व्रत बहुत कठिन होता है. इसमें छठ की तरह पहले दिन नहाएं खाए, दूसरे दिन निर्जला व्रत और तीसरे दिन पारण किया जा है. लहसनी निवासी वैदिक विद्वान पं दुर्गेश पांडेय के मुताबिक इस बार जीवित्पुत्रिका का व्रत 28 सितंबर से शुरू होगा जो 30 सितंबर चक चलेगा. माताएं 29 सितम्बर को व्रत रखेंगी.

जिऊतिया व्रत की पौराणिक कथाः
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और द्रोण पुत्र अश्वत्थामा द्वारा अपने पुत्रों को मरा देख कर पांडव बहुत दुखी हुए. पुत्र शोक से व्याकुल होकर द्रौपदी अपनी सखियों के साथ ब्राह्मण श्रेष्ठ धौम्य के पास गई और उन्हें अपनी व्यथा बताई और पुत्रो के दीर्घायु होने का उपाय पूछी. तब धौम्य ने द्रौपदी को बताया कि सतयुग में एक गंधर्वो में जीमूतवाहन राजा हुए. वे बड़े धर्मात्मा और त्यागी राजा थे. युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने वन में चले गए थे. एक दिन आधी रात को पुत्र शोक से व्याकुल के कोई स्त्री रोने लगी तो गंधर्व राज जीमूतवाहन ने उसके पास पहुंचकर विलाप करने का कारण पूछा तो महिला ने बताया कि वह नागवंशी है तथा नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा. इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है. नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया. गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला. जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया. जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी. जिसके बाद उसने जीमूतवाहन से वर मांगने को कहा. जीमूतवाहन ने कहा कि यदि आप प्रसन्न है तो वर दीजिए कि जितने प्राणियों को खाया है, सबको जीवित कर देंगे. तब गरुण राजा को वरदान दिए और अमृत लाकर मरे हुए प्राणियों के हड्डियों पर छिड़क कर जीवित कर दिए. राजा की दयालुता को देखकर गरुण ने कहा कि आज अश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है. आज ही तुमने यहां के प्रजा को जीवन दान दिया है.  इसलिए जो स्त्री आज के दिन व्रत रखकर नवमी में पारण करेगी, उसके पुत्र दीर्घायु होंगे. तभी से इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा.

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व:
पंडित दुर्गेश पांडेय के बताया कि माना जाता है कि जो महिला अपनी संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं उसकी संतान को कभी भी दुख नहीं उठाना पड़ता है और उनके घर में सुख- समृद्धि बनी रहती है. मान्यता है जो भी महिला इस व्रत की कथा सुनती है उसे कभी भी अपनी संतान से वियोग का सामना नहीं कर पड़ता है.

( नगरा से रिपोर्टर संतोष द्विवेदी की रिपोर्ट)

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